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व्रत कथा कोष
योग्य व्रत है, सद्गति को देने वाला है, इस व्रत के प्रभाव से तुम इसी भव से मोक्ष चले जाओगे । ऐसा सुनकर भरत को मन में बहुत आनन्द हुआ, गणधर के मुख से व्रत का विधान सुनकर व्रत को ग्रहण किया और नगर में श्राया, भरत चक्रवर्ती ने विधिपूर्वक व्रत का पालन किया, अन्त में बड़े वैभव के साथ उद्यापन किया, व्रत ( प्रणति व्रत) जब भरत चक्रवर्ती ने किया तब व्रत के उद्यापन में कैलाशपर्वत पर २४ तीर्थंकर का मन्दिर बनवाकर जिनबिंब स्थापन किया | व्रत विधि कहते हुए मुनिराज ने अपना धर्मोपदेश समाप्त किया, तब मनोहरा रानी ने यह व्रत ग्रहण किया तब सभी लोग मुनिराज को नमस्कार करके नगरी में वापस आये ।
मनोहरा रानी उक्त व्रत को अपनी शक्ति नहीं छिपाते हुए पालन करने लगी, ऐसा देखकर सुप्रभा रानी को बहुत बुरा लगने लगा, एक दिन राजा ने सुप्रभा रानी को कहा कि आज भोजन तैयार करिये तब सुप्रभारानी ने विचार किया कि आज राजा को विष मिलाकर भोजन देना है । रानी ने विष मिश्रित भोजन राजा के लिए तैयार किया । जब राजा भोजन के लिए आये तब एक चौकी बिछाकर थाली में विष मिश्रित भोजन लाकर रख दिया, थाली परोसते हुए कर्मयोग से चौकी से थाली नीचे जमीन पर गिर पड़ी और विष मिश्रित अन्न जमीन पर गिर पड़ा, जब राजा ने उस अन्न को देखा तो लगा कि भोजन में कुछ मिला हुआ है तत्क्षण वैद्य से भोजन की जांच करवाई तो पता लगा कि रानी सुप्रभा ने भोजन में विष मिलाया है, राजा रानी के ऊपर बहुत रुष्ट हुआ, उस रानी का राजा ने बहुत अपमान किया, तब रानी को बहुत दुःख हुप्रा, रानी पश्चाताप करने लगी, अपनी ही निंदा करने लगी ।
मनोहरा रानी के व्रत विधान से राजा के ऊपर होने वाला विषप्रयोग का उपद्रव शांत हो गया, टल गया, सब जगह रानी मनोहरा के व्रत का महात्म्य प्रकट हुआ, तब रानी सुप्रभा ने विचार किया कि इसके व्रत के विधान से ही में भी बच गईं और राजा भी बच गया, तब उसने भक्ति से व्रत को स्वीकार किया, राजा के मन्त्रियों ने भी व्रत को स्वीकार किया, राजा सेना सहित दिग्विजय के लिए निकला और थोड़े ही दिनों में दिग्विजय करके अपनी नगरी में वापस आया, तब मनोहरा