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________________ व्रत कथा कोष [ १६१ इस मन्त्र को पढ़कर वायना (सूपों में भरा हुआ) देवे, इस प्रकार यह पूर्ण विधि है, इस व्रत के प्रभाव से सर्व विघ्नों का नाश होता है, सौभाग्य व दीर्घायुष की प्राप्ति होती है । कथा चतुर्विशति तिर्थेशान् । चतुर्गति निवारकान् । निरिगसाधकान् वंदे । सर्वजीव दया करान् ।। इस जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में अवंति नाम का देश है, उस देश में चंपापुर नाम का एक बहुत बड़ा नगर है, उस नगर में भूपाल नाम का एक वीर्यशाली व गुणवान राजा राज्य करता था। उस राजा की सुप्रभा और मनोहरा दो पट्ट रानियां थीं। राजा अपनी स्त्री-युगल के साथ राज्य करता था। ____एक दिन नगर के उद्यान में एक महामुनीश्वर आये, राजा ने यह समाचार सुनते ही नगर में आनन्द भेरी बजवाकर सर्व जनपरिजन सहित पैदल चलते हुए उद्यान में गया, वहां मुनिराज को तीन प्रदक्षिणा देकर भक्ति से नमस्कार किया कुछ समय धर्मोपदेश सुनकर बड़े विनय के साथ हाथ जोड़कर कहने लगा, कि हे महातपस्वी, आज आप हम को किसी व्रत का स्वरूप बताइये, राजा के वचन सुनकर मुनिराज कहने लगे हे राजन, इस कर्मभूमि के उत्सर्पिणी व अवसर्पिणी काल के अन्दर त्रिकाल तीर्थंकर होते रहते हैं, तीर्थंकरों का पंचकल्याणक होता है, इसी प्रकार भरत क्षेत्र में प्रारम्भ में प्रथम तीर्थंकर श्री आदि तीर्थंकर हुए भगवान को जब केवलज्ञान हुआ तब भरत चक्रवर्ती अानन्द और उत्साह से भगवान के समवशरण में गया, भगवान के चरणकमलों में नमस्कार करके, मनुष्यों के कोठे में जाकर बैठ गया, दिव्य ध्वनि से होने वाला धर्मोपदेश सुनकर दोनों हाथ जोड़कर वृषभसेन गणधर को कहने लगा कि हे भवसिन्धुतारक, आज आप मुझे कोई जो सुगति का कारण हो ऐसा एक व्रत कहो, भरत राजा के विनयशब्द को सुनकर वृषभसेन गणधर कहने लगे हे चक्रवर्ती राजन, तुम को पालन करने योग्य ऐसा ३६० दिन करने
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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