SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 219
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १६० ] व्रत कथा कोष ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं श्रीं वृषभादि वर्धमानांत वर्तमान चतुविंशति तीर्थकरेभ्यो यक्ष यक्षि सहितेभ्यो नमः स्वाहा । इस मन्त्र से सुगन्धित पुष्प लेकर १०८ बार जाप्य करे, जिनवाणी व गुरु की पूजा करे, यक्षयक्षिरगी व क्षेत्रपाल की उनकी योग्यतानुसार पूजा सम्मान करे, जिनसहस्त्रनाम पढ़, णमोकार मंत्र १०८ बार पढ़, याने एक माला फेरे । और व्रतकथा पढ़े और अंत में एक थाली में २४ पान रखकर प्रत्येक पान पर गंध, अक्षत, पुष्प, फलादि रखकर महाअर्घ्य करे, महाअर्घ्य को हाथ में लेकर मन्दिर की तीन प्रदक्षिणा लगावे, मंगल भारती उतारे, महा अर्घ्य को भगवान के आगे चढ़ा देवे, घर जाकर मुनिश्वर को आहार दान देवे, मुनिराज के श्रागे तीर्थं करों का नाम लेकर फिर एकभुक्ति करे, नित्य जिनेन्द्र भगवान का अभिषेक करे, नित्य भोजन करते समय, पान खाते समय, पानी पीते समय, इस व्रत का (रणति व्रत का) नाम लेकर याने, त्रिकाल तीर्थकरों का नाम लेकर, मगर स्वयं को नाम याद नहीं हो तो दूसरे से ५ बार सुने, बाद में भोजन करे । इस क्रम से व्रत को छह वर्ष तक पालन कर, उद्यापन करे, उस समय चौबीस तीर्थंकर की यक्षयक्षि सहित प्रतिमा बनवाकर पंचकल्याणक प्रतिष्ठा करे, २४ वायने तैयार करे, ४८ सूप नवीन मंगवाकर धुलावे, उसमें हल्दी का चूर्ण पानी में २४ सूप के अन्दर पृथक् - २ भीगे हुए चने, अष्ट द्रव्य, सेन्धा नमक, करंजा, फल, पुष्प, पान इत्यादि चौबीस प्रकार की अच्छी २ वस्तुएं डालकर उन चौबीस सूपों को सामान रखे हुवे सूपों से ढंक देवे, ऊपर से धागा लपेट देवे, २४ प्रकार की मिठाई तैयार करके चढ़ावे, देव, शास्त्र, गुरु, पूजनाचार्य व सौभाग्यवती स्त्रियों को देकर अपने घर भी दो लेकर जावे, २४ मुनिराज को प्राहार देकर शास्त्रादि उपकरण देवे, आर्यिकाओं को भी श्राहारादि देकर वस्त्रादि आवश्यक उपकरण देवे । चौबीस हाथ लम्बा चौड़ा सफेद कपड़ा धोकर बिछावे, ऊपर एक टेबल रखे, उस टेबल के ऊपर चौबीस तीर्थंकर की प्रतिमा स्थापन करे, प्रत्येक तीर्थं - कर की अलग २ पूजा करे, फिर वायना देवे । घोलकर लगावे वायनादान मन्त्र :- ॐ नमों अर्हद्द्भ्यो चतुर्विंशति तीर्थंकरेभ्यो सौभाग्येष्ट सिद्धि कुरुत कुरुत स्वाहा ।
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy