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________________ व्रत कथा कोष [ १५६ यह सब सुनकर राजा को बहुत आनन्द हुआ, राजा ने इस नन्दीश्वर व्रत को विनयपूर्वक ग्रहण किया, और अपने नगर में वापस श्राया, कालानुसार व्रत को पालन कर जिनदीक्षा ग्रहण कर मोक्ष को गया, भव्यजीवों ! तुम भी इस व्रत का पालन करो, जिससे हरिषेण चक्रवर्ती के समान सुख भोगकर मोक्ष को जाओगे । अनन्त सौंदर्य व्रत कथा चैत्र कृष्ण द्वितीया के दिन स्नान कर शुद्ध वस्त्र पहन कर पूजा अभिषेक का सामान हाथ में लेकर जिनमंदिर जी में जावे, मन्दिर की तीन प्रदक्षिणा लगावे, पथ शुद्धिपूर्वक भगवान को नमस्कार करे, भगवान का पंचामृताभिषेक करे, प्रष्ट द्रव्य से पूजा करे, श्रुत व गणधर की पूजा करे, यक्ष यक्षी व क्षेत्रपाल की भी अर्चना करे, पांच प्रकार की खीर बनाकर बारह बार चढ़ावे । ॐ ह्रीं प्रष्टोत्तर सहस्त्र नामसहित श्री जिनेंद्राय यक्ष यक्षी सहिताय नमः स्वाहा । पढ़ें । इस मन्त्र से १०८ बार पुष्प लेकर जाप्य करे, व्रत कथा पढ़े, एक थाली में महार्घ्य रखकर मंदिर की तीन प्रदक्षिणा लगावे, मंगल भारती उतारे, उस दिन 'ब्रह्मचर्य से रहे, उपवास करे, दूसरे दिन सत्पात्रों को दान देवे, स्वयं पारणा करे, इसी प्रकार प्रत्येक महिने की इसी तिथि को पूजा कर उपवास करे, व्रत करे, बारह महिने पूर्ण होने पर अंत में उद्यापन करे, उस समय चौबीस तीर्थंकर विधान करे, सत्पात्रों को दान देवे । इस व्रत में भी राजा श्रेणिक व रानी चेलना का जीवन चरित्र श्रति पूर्णिमा व्रत कथा आषाढ, कार्तिक, फाल्गुन इन महिनों में आने वाली पौरिंगमा को स्नान कर शुद्ध वस्त्र पहन कर पूजा व अभिषेक का सबै सामान लेकर मन्दिर जी में जावे, मन्दिर की तीन प्रदक्षिणा लगाते हुवे ईर्यापथ शुद्धि करता हुवा, भगवान को नमस्कार करे, चौबीस तीर्थ ंकर की मूर्ति यक्ष यक्षी सहित पीठ पर स्थापन कर पंचामृत अभि बेक करे, उस के बाद जिनप्रभु की पूजा जयमाला सहित पढ़ े
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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