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________________ छप चुकी है, लेकिन किसी में कुछ कमी है तो किसी में कुछ कमी है । कहीं कथा है तो विधि नहीं, कहीं विधि है, तो कथा नहीं ! कहीं एक कथा है तो कहीं २०-३० कथानों का संग्रह है, ज्यादा से ज्यादा वर्तमान में छपी हुई पुस्तकों में १०० कथाओंों का संकलन मिल जाता है। सूरत से छपी हुई व्रत कथा संग्रह, पं. बारेलालजी से संग्रहित टीकमगढ़ छपी व्रत कथा संग्रह, महाराष्ट्र से छपी हुयी एक पुस्तक अज्ञात जी की सग्रहित से और पं. वर्धमान पार्श्वनाथ शास्त्री का जिनेन्द्र व्रत कथा संग्रह और डा. नेमी चन्द्र जी शास्त्री आरा के द्वारा संग्रहित व्रत तिथि निर्णय आदि अनेक पुस्तको में अनेक प्रकार की विधियां है | व्रत करने वालों को एक हो पुस्तक में सब विधि व व्रत कथा उपलब्ध नहीं होती हैं । उत्तरस्थ विधि में और दक्षिणस्थ विधि में बहुत फरक है । जो कथाएं उत्तर में मिलती है वे दक्षिरण में नहीं मिलती हैं । जो दक्षिण में मिलती है, वे उत्तर में नहीं मिलती है । सर्वागीय व्रत विधान कथा एक जगह नहीं मिलती है । वैसे तो इन सब प्रतियों में ज्ञान पीठ से छपी हुई डा. नेमीचन्द्र जी प्रारा द्वारा संग्रहित व्रत तिथि निर्णय अपने आप में कुछ पूर्ण है, लेकिन सब व्रत विधि नहीं है। उत्तर भारत में तो यही कथा की पुस्तक उपलब्ध होती है । पं. बारेलालजी शास्त्री टीकमगढ़ द्वारा संग्रहित व्रत कथा संग्रह पुस्तक तो अच्छी है लेकिन कथा सांगोपांग नहीं है । सोलापुर की वर्धमान पार्श्वनाथ शास्त्री द्वारा जिनेन्द्र व्रत विधान का संग्रह किया है वह कन्नड़ भाषा से मराठी में अनुवादित है. उसमें ३०० व्रत कथा का संग्रह है । संग्रह अच्छा है. किंतु व्रत तिथि निर्णय उसमें नहीं है । कथाओं का संग्रह सबसे ज्यादा इसी पुस्तक में है। जिन व्रतों के उत्तर भारत में नाम तक नहीं मिलते बस वही पच्चीस, तीस व्रत विधान और ज्य दा से ज्यादा सौ एक व्रत विधान मिलते हैं । महाराष्ट्र में एक और पुस्तक मिलती है, प्रज्ञातजी द्वारा संग्रहित है लेकिन इन्होंने जिनेन्द्र व्रत कथा और व्रत तिथि निर्णय के कुछ अंश लेकर संक्षिप्तिकरण कर दिया है । वह पुस्तक भी अपूर्ण है । इन सब संकलनों को देखा जाय तो सब अपने आप में अधूरे दिखते है । कई दिनों से विचार कर रहा था कि एक ऐसा संकलन किया जाय जिससे सम्पूर्ण व्रत विधि कथाएं, उद्यापन विधि व्रतिक को एक ही जगह उपलब्ध हो, अनेक पुस्तके नहीं देखना पड़े । धर्मात्मा भव्य जीवों को व्रत विधान की सुविधा हो जाय ऐसा विचार करके हमने सब पुस्तके सामने रखकर व्रत कथा संग्रह का एक संकलन तैयार किया है । एक दिन शुभ मुहूर्त में मंगलाचरण प्रारम्भ कर दिया गया करीब दो साल के कठोर साधना व परिश्रम से अपने आप में एक पूर्ण व्रत कथा विधि तैयार हो गया । वर्ष १६८७ के चार्तुमास से प्रारम्भ करके १६८६ के चार्तुमास में बडौत नगरी में पूर्ण किया ।
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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