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व्रत कथा कोष
खण्डे..... प्रदेशे . नगरे एतत् प्रवपिणीकालावसानचतुर्दशप्राभूतमानिमानितसकललोकव्यवहारे श्रीगौतमस्वामिश्रीरिणकमहामण्डलेश्वरसमाचरितसन्मार्गावशेषे ..... वीरनिर्वाणसंवत्सरे अष्टमहाप्रातिहार्यादिशोभितश्रीमदहत्परमेश्वरप्रतिमासन्निधौ अहम् अष्टान्हिकावतस्य संकल्पं करिष्ये । अस्य व्रतस्य समाप्तिपर्यन्तं मे सावधत्यागः गृहस्थाश्रमजन्यारम्भपरिग्रहादीनामपि त्यागः ।
सप्तमी तिथि से प्रतिपदा तक ब्रह्मचर्य व्रत धारण करना आवश्यक होता है, भूमि पर शयन, सचित्त पदार्थों का त्याग, अष्टमी को उपवास, रात्रि को जागरण आदि क्रियाएं की जाती हैं।
अष्टमी तिथि को दिन में नन्दीश्वरद्वीप का मण्डल मांडकर अष्टद्रव्यों से पूजा की जाती है । पूजा-पाठ के अनन्तर नन्दीश्वर व्रत की कथा पढ़नी चाहिए । 'ॐ ह्रीं नन्दीश्वर द्वीपजिनालयस्थजिनबिम्बेभ्यो नमः' इस मन्त्र का १०८ बार जाप करना चाहिए । नवमी को 'ॐ ह्रीं अष्टमहाविभूतिसंज्ञायै नमः' इस महामन्त्र का जाप; दशमी को 'ॐ ह्रीं त्रिलोकसागर संज्ञायै नमः' मन्त्र का जाप; एकादशी को 'ॐ ह्रीं चतुर्मुखसंज्ञायै नमः' मन्त्र का जाप; द्वादशी को 'ॐ ह्रीं पञ्चमहालक्षण संज्ञाय नमः' मन्त्र का जाप; त्रयोदशी को 'ॐ ह्रीं स्वर्गसोपान संज्ञायै नमः' मन्त्र का जाप; चतुर्दशी को 'ॐ ह्रीं सिद्ध चक्र य नमः' मन्त्र का जाप एवं पूर्णिमासी को 'ॐ ह्रीं इन्द्रध्वजसंज्ञायै नमः' मन्त्र का जाप करना चाहिए ।
__ व्रत की धारणा और समाप्ति के दिन णमोकार मन्त्र का जाप करना चाहिए । व्रत समाप्ति के दिन निम्न संकल्प पढ़कर सुपाड़ी पैसा या नारियल पैसा चढ़ाकर भगवान् को नमस्कार कर घर आना चाहिए
'ॐ प्राद्यानाम् आद्य जम्बूद्वीपे भरतक्षेत्रे शुभे श्रावणमासे कृष्णपक्षे प्रद्य प्रतिपदायां श्रीमदर्हत्प्रतिमासन्निधौ पूर्व यद्वतंगृहीतं तस्य परिसमाप्ति करिष्येऽहम् । प्रमादाज्ञानवशात् व्रते जायमानदोषाः शान्तिमुपयान्ति-ॐ ह्रीं क्ष्वीं स्वाहा । श्रीमज्जिनेन्द्रचरणेषु प्रानन्दभक्तिः सदास्तु, समाधिमरणं भवतु, पापविनाशनं भवतुॐ ह्रीं असि प्रा उ सा य नमः । सर्वशान्तिर्भवतु स्वाहा ।