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________________ १५४ ] व्रत कथा कोष मार्गः सुगमः सूचितः जघन्यापेक्षया तदादिदिनमारभ्य पूणिमान्त कार्यः षष्ठोपवासः पद्मदेववाक्यसमादरैः भव्यपुण्डरीकैः अन्यथाक्रियमाणे सति व्रतविधिर्मश्येत् एवं सावधिकानि व्रतानि समाप्तानि । अर्थः-अष्टान्हिका व्रत कार्तिक, फाल्गन और आषाढ़ मासों के शुक्ल पक्षों में अष्टमी से पूर्णिमा तक किया जाता है । तिथिवृद्धि हो जाने पर एक दिन अधिक करना पड़ता है। व्रत के दिनों के मध्य में तिथि ह्रास होने पर एक दिन पहले से व्रतं करना होता है। जैसे मध्य में तिथि-ह्रास होने से सप्तमी को उपवास, अष्टमी को पारणा, नवमी को काजी-छाछ, दशमी को ऊनोदर, एकादशी को उपवास, द्वादशी को पारणा, त्रयोदशी को निरस, चतुर्दशी को उपवास एवं शक्ति होने पर पूर्णिमा को उपवास, शक्ति के अभाव में ऊनोदर तथा प्रतिपदा को पारणा करनी चाहिए । यह सरल और जघन्य विधि अष्टान्हिका व्रत की है । व्रत की उत्कृष्ट विधि यह है कि अष्टमी से षष्ठोपवास अर्थात अष्टमी, नवमी का उपवास दशमी को पारणा, एकादशी और द्वादशी को उपवास, त्रयोदशी को पारणा एवं चतुर्दशी और पूर्णिमा को उपवास और प्रतिपदा को पारणा करनी चाहिए । श्री पद्मप्रभदेव के वचनों का प्रादर करने वाले भव्य जीवों को उक्त विधि से व्रत करना चाहिए। इस प्रकार बतायी हुयी विधि से जो व्रत नहीं करते हैं, उनकी व्रत विधि दूषित हो जाती है, और व्रत का फल नहीं मिलता । इस प्रकार सावधिव्रतों का निरूपण पूरा हुआ। विवेचन:-कार्तिक, फाल्गुन और आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष में अष्टमी के दिन व्रत की धारणा करनी होती है । प्रथम ही श्री जिनेन्द्र भगवान का अभिषेक पूजन सम्पन्न किया जाता है, तत्पश्चात् गुरु के पास, यदि गुरु न हो तो जिनबिम्ब के सम्मुख निम्न संकल्प को पढ़कर व्रत ग्रहण किया जाता है । ब्रत ग्रहण करने का संकल्प-- ____ॐ प्रद्य भगवतो महापुरुषस्य ब्रह्मणो मते मासानां मासीत्तमे मासे प्राषाढमासे शुक्लपक्षे सप्तम्यां तिथौ .... 'वासरे........ 'जम्बूद्वीपे भरतक्षेत्रे आर्य
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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