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________________ व्रत कथा कोष प्रकार इस व्रत की पूर्णविधि है, इस व्रत का विधान राजा श्रेणिक ने सुनकर मन मैं प्रानन्द मनाया, सब लोगों को भी बहुत आनन्द प्राया । इस व्रत की कथा भी श्रेणिक पुराण में ही है चेलना ने व्रत को पालन कर सद्गति प्राप्त की । हिगही व्रत विधि व [ १४९ कथा श्रीमन्नाभितं भक्त्या, वृषभं जिननायकं । स्थापये विधिना नत्वा, जंतूनां सुखकारकं ।। कोई भी अष्टान्हिका की अष्टमी को प्रातः स्नान कर, शुद्ध वस्त्र पहन कर पूजाभिषेक का सामान लेकर जिनमन्दिर में जावे, मन्दिर की तीन प्रदक्षिणा लगाकर, शुद्धि करके भगवान को नमस्कार करे, सिंहासन पीठ पर पंचपरमेष्ठी की प्रतिमा स्थापन कर पंचामृताभिषेक करे, अष्टद्रव्य से पंचपरमेष्ठी की पूजा करे, यक्षयक्षिणी, क्षेत्रपाल, की यथायोग्य पूजा करे, जिनवाणी व गुरू की पूजा करे । ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं ह्रः असिग्राउसा नमः स्वाहा । इस मन्त्र से १०८ पुष्प लेकर मंत्र का जाप्य करे, व्रत कथा पढ़, एक थाली में महार्घ्य बनाकर हाथ में लेकर मंदिर को तीन प्रदक्षिणा लगावे, मंगल आरती उतारे, महा अर्घ्य भगवान को चढ़ा देवे, उस दिन उपवास करे, ब्रह्मचर्य का पालन करे, सत्पात्रों को दान देवे, इसी क्रम से चार महिने तक प्रत्येक शुक्ल अष्टमी को पूजा विधि करे, श्रावक के सर्व व्रतों का पालन करे, भ्रष्ट जमीकंदों का त्याग करे, चार महिने पूर्ण होने पर आगे की भ्रष्टान्हिका में उद्यापन करें, उस समय पंचपरमेष्ठी विधान करे, महाभिषेक करे, भगवान के आगे उत्तम पदार्थ रखकर पूजा करें, मन्दिर में उत्तम उपकरण देवे, चतुर्विध संघ को दान देवे, फिर पारणा करे इस प्रकार व्रत की पूर्ण विधि है । कथा द्वारावती नगरी का राजा त्रिखंडाधिपति श्रीकृष्ण पट्ट रानी सहित राज्य
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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