________________
१४८ ]
व्रत कथा कोष
___अष्टकर्मचूर्णव्रत विधि व कथा चैत्रादि मास में से किसी भी महिने के शुभ दिन में प्रातःकाल स्नान कर शुद्ध वस्त्र पहनकर सर्व प्रकार का पूजासाहित्य लेकर जिन मन्दिर में जावे, वहाँ जाने के बाद मंदिर की तीन प्रदक्षिणा लगावे, ईर्यापथ शुद्धिपूर्वक भगवान को साक्षात नमस्कार करे, नंदादीप (अखण्डदीप) जलावे, श्री अभिषेक पीठ पर सिद्ध प्रतिमा स्थापन कर पंचामृत अभिषेक करे, अष्ट द्रव्य से पूजा करे, पांच पक्वान्न का नैवेद्य बनावे, जिनवाणी, निग्रंथ गुरू, यक्ष यक्षिणी, क्षेत्रपाल की भी अर्चना करे
ॐ हीं अहं अष्टकर्मरहिताय श्री सिद्धाधिपतये स्वाहा ।
इस मन्त्र से १०८ बार पुष्प लेकर जाप करे, णमोकार मन्त्र की एक माला जपे, सिद्ध भक्ति पढ़कर स्वाध्याय करे, व्रतकथा अवश्य पढ़े । एक थाली में आठ पान लगाकर उनके ऊपर अष्ट द्रव्य रखे, एक नारियल रखकर महार्य करे, अर्घ्य हाथों में लेकर मंदिर की तीन प्रदक्षिणा लगावे, मंगल आरती उतारे, उस दिन उपवास करे, धर्मध्यान से समय बितावे, सत्पात्रों को प्राहारदान देवे, उस दिन ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करे, दूसरे दिन पारणा करना।
इस प्रकार ज्ञानावरणीय कर्म के क्षय के लिये ८ पूजा ८ उपवास, दर्शनावरणीय कर्म के क्षय के लिये पहले के समान ८ पूजा पूर्ववत् व आठ दिन मात्र पानी लेवे । वेदनीय कर्म के क्षय के लिये पहले के समान पूजा करे, फलाहार करे । मोहनीय कर्म के क्षय के लिये ८ पूजा व मात्र एक ग्रास का ही आहार लेवे । आयु कर्म के क्षय हेतु ८ पूजा व अंबली भात का भोजन करे । नाम कर्म के क्षय के लिये ८ पूजा व पूड़ी का भोजन करे, गोत्र कर्म के क्षय के लिये पहले के समान ८ पूजा व भात का भोजन करे, और अन्तराय कर्म के क्षय के लिये, पहले के समान ८ पूजा सहित मात्र एक भात का दाना खावे । इस प्रकार ६४ पूजा ६४ उपवासादि क्रिया करते हए, व्रत का उद्यापन करे, उस समय पंचवर्ण रंगोली से ६४ कमल दल का यंत्र निकालकर सिद्धप्रतिमा स्थापन करके सिद्ध परमेष्ठी विधान करके महाभिषेक करे, चतुर्विध संघ को आहारदानादि देवे, मुनि आर्यिकाओं को उपकरणादि भेंट करे, मंदिर में घंटा, चामर, छत्र, धूपाना, अभिषेक पोठ इत्यादि उपकरण भेंट करे, इस