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________________ व्रत कथा कोष - -__[ १४७ पुण्य करने से मेरा राज्य मुझे वापस मिलेगा। कृपा करके बताए, तब मुनीश्वर कहने लगे कि हे राजन आपने गुणवती के हाथ बंधा हुआ अनन्त अविवेक से तोड़ डाला इस कारण तुम्हारे राज्य को रुष्ट हुए किन्नर यक्ष और अनन्तमती यक्षी ने नष्ट कर दिया है । अगर तुम अनन्त व्रत को विधिपूर्वक करके उसका उद्यापन करोगे तो तुम्हारा राज्य तुम्हें वापस मिल जायगा, विश्वास होने के लिए तुम्हें रात्रि को स्वप्न में छत्र, चामर, आदि शुभ वस्तुएं दिखेंगी मुनिराज के मुख से ऐसा सुनकर राजा को बहुत ही आनन्द प्राया, राजा ने मुनिराज से अनन्त व्रत को स्वीकार किया और अपने इष्ट स्थान को चला गया । राजा और गुणवती दोनों ही अनन्त व्रत को विधि पूर्वक पालन करने लगे एक दिन राजा सोया हुआ था, चौथे प्रहर में राजा ने शुभ स्वप्न देखे, प्रातःकाल यक्ष और यक्षिणी ने राजा के ऊपर प्रसन्न होकर राजा के राज्य को वापस दिला दिया, राजा ने व्रत का उद्यापन उत्सव के साथ किया, और सुख से राज्य भोग करने लगा, कुछ दिनों के बाद राजा को असाध्य रोग उत्पन्न हुआ, यह देखकर राजा को विषयों से वैराग्य उत्पन्न हपा, ज्येष्ठ पुत्र विश्वसेन को राज्य देकर एक मुनिश्वर के पास दीक्षा लेकर तपश्चरण करने लगा। अन्त में समाधिमरण कर अच्युत स्वर्ग में देव हुआ, गुणवती भी अन्त में समाधिमरण कर अच्युत स्वर्ग में स्त्री लिंग को छेद कर देव हुई। वहां दोनों देव चिरकाल तक स्वर्ग सुख भोगने लगे, ये दोनों देव नियम से मनुष्य पर्याय प्राप्त कर मोक्ष को जायेंगे। इस व्रत विधान को पूर्वोक्त श्रेणिकादि ने सुनकर बहुत ही प्रानन्द मनाया, और राजा श्रेरिणक, रानी चेलना ने गौतम स्वामी को नमस्कार करके व्रत को स्वीकार किया, और वापस राजगृह नगर में आ गये । व्रत का पालन किया अन्त में उद्यापन किया, उसके फल से राजा श्रेणिक को तो तीर्थंकर पद का बंध हुआ, मौर रानी चेलना का स्त्रीलिंग छेद हो कर स्वर्ग में जन्म हुआ। - इसलिए हे भव्य जीवो आप भी गुरु के निकट व्रत को ग्रहण कर विधि पूर्वक पालन, उद्यापन करो, पापको भी अवश्य मोक्ष प्राप्त होगा।
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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