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व्रत कथा कोष
चलिये । ऐसा कहकर गुणवती को साथ ले गई और मादक पदार्थ सुघा कर अपने राजा के पास काश्मीर देश में गई और गुणवती को राजा के आधीन किया, राजा ने आनन्दित होकर दासियों को इच्छाप्रमाण धन देकर विदा किया । पश्चात् राजा गुणवती को प्रसन्न करने लगा, किन्तु गुणवती प्रसन्न नहीं हुई, तब राजा ने हस्तिनापुर से गुणवती के पिता को बुलाया, पिता ने आकर गुणवती का विवाह राजा के साथ करा दिया और हस्तिनापुर को लौट आया। ...
आगे अनन्तव्रत विधि करने का समय आया तब गणवती शुद्ध वस्त्र पहनकर पूजा सामग्री लेकर जिनमन्दिर में गई, अनन्तनाथ तीर्थंकर की पूजा कर हाथ में नवीन अनन्त बांधकर घर गई, राजा ने उसे देखकर पूछा कि हे देवि प्राज तुमने हाथ में यह क्या बांध रखा है, तब गुणवती कहने लगी कि राजन यह अनन्त व्रत विधान की अनन्त मैंने बांधी है, राजा को भ्रम हो गया और ऐसा कहता हुआ कि तुमने मुझे वश में करने के लिए कोई तंत्र किया है और उस अनन्त को तोड़ दिया, तब गुणवती को बहुत ही बुरा लगा, गुणवती शय्यागृह में जाकर द्वारों को बंद कर चिंतामग्न होकर सो गई, वहां की साध्वी स्त्रियों ने आकर गुणवती को समझाया, आगे कुछ ही दिनों के बाद राजा के किसी शत्रु ने राज्य के ऊपर आक्रमण करके राज्य को छीन लिया। राजा और गुणवती दोनों निःसहाय होकर जंगल में गए, जंगल में एक शिला पर महामुनिवर ध्यानमग्न बैठे थे, मुनिराज को देखकर गुणवतो राजा को कहने लगी कि प्राणनाथ, यहां जो मुनिश्वर बैठे हैं, वो अपने सर्वदुःखों को नष्ट कर सुखी करेंगे । इसलिए चलो इनके निकट चलें।
__राजा गुणवती के साथ मुनिराज के पास गया, वहां जा कर गुणवती ने तीन प्रदक्षिणा देते हुए भक्तिभाव से नमोऽस्तु किया, मुनिश्वर ने भी ध्यान विसर्जन करके ये लोग प्रासन्नभव्य हैं ऐसा जानकर सद्धर्मवृद्धिरस्तु ऐसा आशीर्वाद दिया। मुनिराज ने कहा कि 'भुजबल राजन' राज्य वापस कब प्राप्त होगा, मन में यह विचार कर रहे, हो यह सुनकर राजा को बहुत ही आश्चर्य हुआ, मेरे मन की बात कैसे जान ली, राजा ने श्रद्धाभक्ति से नमस्कार किया, बड़े ही विनय के साथ राजा कहने लगा कि हे स्वामिन मेरा राज्य किस कारण से नष्ट हुआ, और कौनसा