SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 209
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १५० ] व्रत कथा कोष करते थे, उनके पुत्र का नाम पद्युम्न कुमार था, वह कामदेव थे, एक दिन श्रीकृष्ण ने पद्युम्न कुमार की शादी के लिये योगकन्या रति देवी है जान कर अपने साले रुक्मी को दूत के द्वारा कुन्दमपुर समाचार भेजे, दूत के द्वारा समाचार पाकर रुकमी नरेश बहुत नाराज हुआ, और दूत को कहने लगा कि हे दूत में अपनी पुत्री चांडाल को दे दूंगा किन्तु कामकुमार को नहीं दूंगा, दूत ने ज्यों ही समाचार श्रीकृष्ण को कह सुनाये, तब पद्य म्न कुमार रति कुमारी को बलातहर कर अपनी द्वारिका नगरी में ले आया, और अपना रूप चाण्डाल का बनाकर रतिकुमारी से कहने लगा कि मैं चांडाल हूँ कामकुमार नहीं हूं, मैने मायाचारी से यह सब किया है, अब तुमको मेरे साथ ही शादी करनी पड़ेगी, यह सब सुन देख कर रति कुमारी रोने लगी बहुत दुःखी होने लगी, रति कुमारी को दुःखी देखकर रूवमणी ने रति कुमारी को समझाया कि हे रति कुमारी तुम रोप्रो मत दुःखी मत होओ, पद्युम्न कुमार की आदत ही है व्यर्थ की चेष्टा करना । मैं तुम्हारा विवाह उसी के साथ करू गी तुम चिन्ता न करो, तब रुक्मणी ने पद्युम्न कुमार के साथ रति का विवाह कर दिया । और रति कुमारी को बारह वर्ष के लिये एक अलग से महल देकर छोड़ दिया, पति विरह के कारण रति देवि दुःखी होने लगी, एक दिन नगर के उद्यान में एक मुनिराज के रति को दर्शन हुए, रति ने हाथ जोड़कर नमस्कार किया और अपने दुःखों का सब वृतांत कह सुनाया, मुनिराज अपने अवधिज्ञान से सब जानकर कहने लगे कि हे बेटी, तुमने पूर्व भव में अपनी सौत के द्वेष से भगवान को प्रतिमा सात घड़ी तक छुपाकर रखी थी, इसलिये तुम को इस प्रकार का दुःख प्राप्त हुआ है, अगर पापों से मुक्ति चाहती हो तो तुम अहिगदी व्रत का पालन करो, जिससे पतिसंयोग फिर से होकर तुम को सुख की प्राप्ति होगी। मुनिराज ने सब व्रत की विधि अच्छी तरह से बता दी, यह सब कथन सुनकर उसको बहुत आनन्द आया उसने मुनिराज के द्वारा बताये गये व्रत को धारण किया, और नगर में आकर यथायोग्य व्रत का पालन किया, उद्यापन किया, धर्म के प्रभाव से पद्युम्न कुमार रति पर प्रसन्न हो गया और दोनों संसार का सुख भोगने लगे, कुछ दिनों के बाद नेमी तीर्थ कर के समवशरण में जाकर पद्य म्न कुमार ने दीक्षा धारण कर ली तब रति ने भी दीक्षा ग्रहण कर ली, दोनों ही घोर तपश्चरण करने लगे, पद्य म्न कुमार ने कर्मों को काटकर मोक्ष
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy