________________
व्रत कथा कोष
[ १४१
मन्दिर की तीन प्रदक्षिणा लगावे, आरती उतारे, उसके बाद विसर्जन करे । जो पुरानी अनन्त हाथ में धारण कर रखी थी, उसको छोड़े । अनन्त द्वारमोचन मंत्र :
___ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अर्ह सर्वबंधन विनिर्मुक्ताय अनन्तसुखप्रदाय नमः स्वाहा।
इस मन्त्र से पुरानी अनन्त छोड़ देवे ।
ॐ नमोऽग्रहते भगवते अनंत तीर्थंकराय ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं प्रह नमः सर्व शांति कुरु २ तुष्टि कुरु २ पुष्टि कुरु २ सर्व सौभाग्यमायुरारोग्यमिष्टि कुरु २ वषट् स्वाहा।
_इस मंत्र से नवीन अनन्त बांधे और नवीन जनेऊ धारण करे, नवीन सूप के अन्दर १४ प्रकार के फलादिक डालकर ऊपर से सूप से बांधकर वायना तैयार करे, वायना को भगवान के सामने रखे, उसमें दो वायना गृहस्थाचार्य के हाथ से प्रसाद रूप लेकर अपने घर जावे । वायनादान मंत्रः-ॐ निधेयसेऽसौदत्तादानं फलं भवेदायुष्मान् भवेन्नित्यम् ।
इस मन्त्र से गृहस्थाचार्य को व्रती को वायना देना चाहिये, सत्पात्रों को दान देकर स्वयं पारणा करे, तीन दिन तक ब्रह्मचर्य से रहे।
इस विधि से इस व्रत को चौदह वर्ष पर्यत पालन करे, अंत में उद्यापन करे, उस समय अनन्तनाथ तीर्थ कर की नवीन प्रतिमा यक्षयक्षिणी सहित बनवाकर उत्सव से पंचकल्याणक प्रतिष्ठा करावे, चौदह बांस के करंडे में सुपारी, केला, बादाम, इलायची, जायफल, छुहारा, अमरूद ( पेरू ), अनार, सीताफल, कवीठ, नीबु, विजोरानीबु, आंवला ये प्रत्येक के अन्दर चौदह २ रखकर और पूरी, लड्डू, खाने के पान, लौंग, यज्ञोपवीत, गंधाक्षत, पुष्प, एक नारियल और यथाशक्ति रुपया इस प्रकार द्रव्यों को रखे। चौदह मुनिवरों को आहारादि दान देवे, आवश्यक उपकरणादि देवे, उसी प्रकार प्रायिकाओं को भी साडी आदि उपकरण देवे, चौदह दंपतियों को वस्त्रादिक देकर सम्मान पूर्वक भोजन करावे,