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व्रत कथा कोष
ऊपर उस थाली को रखे, फिर नित्यपूजाक्रम करके श्री अनन्तनाथ तीर्थंकर की पूजा करे, स्तोत्र, जयमाला, पूर्वक पूजा करे । उसके बाद – ॐ नमोऽर्हते भगवते श्रणंतारणंतसिज्भधम्मे भगवतो महाविज्जा २ प्ररणंताणंत के लिए प्रांत केवल राणे, प्रांत केवल दसरणे, श्रणुपुज्जवासणे श्ररणंते श्ररणंतागम केवली स्वाहा ।
इस मन्त्र से १०८ बार पुष्प लेकर जाप्य करे, और ॐ ह्रीं प्रसिश्राउसानमः अनन्त द्वारानि श्रत्र श्रागच्छत २ संवौषट् अत्र तिष्ठत २ ठ ठ । श्रत्र मम् सन्निहितो भव २ वषट् ।
इस मंत्र से अनन्त की स्थापना कर अष्टद्रव्य से पूजा करे ।
ॐ नमोऽनंतनाथाय सर्वशिवसौख्यायचिरकालं नंदंतु वर्ध तु वज्रमयं कुर्वंतु स्वाहा ।
इस मन्त्र से २७ बार सफेद फूलों से जाप करे, अनन्त के ऊपर चढावे । अनन्तनाथ तीर्थ कर का चरित्र व अनन्त व्रत की कथा को पढे या सुने, उसके बाद एक महार्घ्यं चढ़ाकर मन्दिर की तीन प्रदक्षिणा देकर मंगल आरती उतारे, घर जाकर सत्पात्रों को दान देवे, उस दिन एकभुक्ति करे ।
समान पूजा करना चाहिये, पर्यंत चौदह तीर्थकरों की उपरोक्त विधि से एक थाली
चतुर्दशी के दिन भी त्रयोदशी की विधि के विशेष विधि यह है कि वृषभनाथ से लेकर अनन्त नाथ पूजा स्तोत्र सहित जयमालापूर्वक पूजा करना चाहिये, में १४ पान वगैरे द्रव्य रखकर महार्घ्य, तीन प्रदक्षिणा पूर्वक चढ़ाना चाहिये । उस दिन उपवास करना चाहिये, स्वाध्याय, रात्रि जागरण करना, पूर्णिमा के दिन प्रातः काल अनन्तनाथ तीर्थ कर, अनन्त यंत्र, अनन्त जनेऊ इन सबका पंचामृताभिषेक करना, अष्टद्रव्य से पूजा करना अन्त में जिनवाणी, गुरु की पूजा करना, यक्षयक्षी व क्षेत्रपाल का यथायोग्य अर्घ्य पूर्वक सम्मान करना ।
ॐ ह्रीं अनन्तनाथाय किन्नर यक्ष अनन्तमतियक्षी सहिताय नमः स्वाहा । इस मन्त्र से १०८ पुष्प लेकर यंत्र के ऊपर जाप्य करे, पूर्णा चढाकर