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व्रत कथा कोष
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(१०) दसवीं गांठ :-अधोलोक, मध्यलोक, उर्ध्वलोक ये तीन लोक चौदह राजु है ऐसा बोलकर गांठ लगावे ।
(११) ग्यारहवीं गाँठ :-चक्र, ध्वज, खड्ग, दंड, मणि, काकिणी, गृहपति, सेनापति, कारागिर, हस्ती, अश्व, पट्टस्त्री, पुरोहित, अशी ये चौदह रत्न चक्रवर्ती के पास रहते हैं इनका नाम लेकर एकादशवीं गांठ लगाना ।
(१२) बारहवीं गांठ :-अ से लेकर प्रो पर्यंत चौदह स्वरों का नाम लेकर बारहवीं गांठ लगाना ।
(१३) तेरहवीं गांठ :-प्रतिपदा से लेकर चतुर्दशी पर्यंत तिथियों के नाम लेकर तेरहवीं गांठ लगाना ।
(१४) चौदहवीं गांठ :--रक्त, मांस, पीव, अस्थि, चर्म, मतक जीव का शरीर, कंद, मल, केश, नख, तुष, बीज, बीज सहित फल, धान्य का अंकुर ये चौदह मलदोष हैं, ये वस्तुएँ आहार में आने पर मुनिराज अन्तराय करते हैं, इनका नाम लेकर चौदहवीं गांठ लगाना।
इस विधि से धागे की अनन्तमाला तैयार करे, मंत्र से उसकी प्राणप्रतिष्ठा करे ।
मन्त्र :-"ॐ प्रां कों ह्रीं असिमाउसा, य र ल व श, ष स ह हं सः त्वगस्त्र मांसमेदोस्थि मज्जा शुक्रादि धातवः अनन्तद्वारारणां प्रारणाः अनन्त द्वारारणां जीवा इह स्थित सर्वेद्रियारिण, कायावाङ मन चक्षुश्रोत घ्राणमुख जिव्हा स्थापय स्थापय स्वाहा"
इसके बाद अनन्त की पूजा करे (माला अनन्त सूत की अथवा सोना, चांदी, ताम्र के तार की बना सकते हैं।).
___ अभिषेक के बाद, महाशांति मंत्र पढे, उसके बाद अनन्तनाथ की प्रतिमा, अनन्त यंत्र, और धागे की बनाई हुई अनन्त, ये सब तथा एक थाली में १४ पान, गंध अक्षत, पुष्प, फल वगैरे रखकर, एक नवीन मिट्टी के घड़े को धोकर उसके