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व्रत कथा कोष
(३) गांठ तीसरी :-प्रतिश्रुति, मकर, क्षेमंधर, सीमंकर, सीमंधर, विमलवाहन, चक्षुष्मान, यशस्वी, अभिचंद्र, चन्द्राभ, मरुदेव, प्रसन्नजीत, नाभिराज इन चौदह मनुओं का उच्चारण कर तीसरी गांठ लगावे ।
(४) चौथी गांठ :-सर्वार्धमागधीभाषा, सर्वजीवों पर मैत्री, सर्वऋतु के फल पुष्पों से युक्त वृक्ष का होना, दर्पण के समान स्वच्छ भूमि, सुगन्ध युक्त वायु का बहना, सब जीवों को आनन्द होना, एक योजन भूमि निष्कंटक होना, गन्धोदक की वृष्टि होना, केवली के पांवों के नीचे कमल की स्थापना, सौ योजन तक सुभिक्ष का होना,
आकाश का निर्मल दिखना, देवों का प्रामगन होना, धर्मचक्र का चलना, आठ मंगल द्रव्य का होना इन चौदह अतिशयों का नाम लेकर गांठ देना ।
(५) गांठ पांचवीं :-उत्पाद पूर्व, प्राग्रायणी पूर्व, वीर्यानुवाद, अस्तिनास्ति प्रवाद, ज्ञान प्रवाद, कर्म प्रवाद, सत्प्रवाद, आत्मप्रवाद, प्रत्याख्यान, विघानुवाद, कल्याणवाद, प्राणानुवाद, क्रियाविशाल पूर्व, लोक बिंदुसार इस प्रकार चौदह पूर्वी का नाम लेकर गांठ देना।
(६) छठी गांठ-: मिथ्यात्व, सासादन, सम्यगमिथ्यात्व, अविरत, देशविरत, प्रमतविरत, अप्रमत, अपूर्वकरण, अनिवृतिकरण, सूक्ष्मसांपराय, उपशांत कषाय, क्षीण कषाय, सयोग, केवली, प्रयोग केवलो इन चौदह गुणस्थानों के नामोच्चारण कर गांठ लगावे।
(७) सातवीं गांठ-: गति, इन्द्रिय, काय, योग, वेद, कषाय, ज्ञान, संयम, दर्शन, लेश्या, भव्यत्व, सम्यक्त्व, संज्ञित्व, आहार इन चौदह मार्गणापों का नाम लेकर गांठ लगावे ।
(८) आठवीं गांठ-: पृथ्वीकाय, जलकाय, तेजकाय, वायुकाय, नित्य निगोद, इतर निगोद, प्रत्येक वनस्पति, साधारण वनस्पति, द्वीद्रिय जीव, तीन इन्द्रिय जीव, चतुरिन्द्रिय जीव, पंचेन्द्रिय जीव, संज्ञीजीव, असंज्ञीजीव इन चौदह समासों का नाम लेकर गांठ लगावे ।
(९) नौवीं गांठ-: गंगा, सिन्धु, रोहित, रोहितास्य, हरित, हरिकान्त, सीता, सीतोदा, नारी, नरकांता, सुवर्णकुला, रूप्यकुला, रक्ता, रक्तोदा इन चौदह नदियों का नाम लेकर गांठ लगावे ।