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व्रत कथा कोष
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पश्चात् अर्थात् दूर्वा, तथा शुद्ध सूत से बने और हल्दी में रंग हुए चौदह गांठ के अनन्त को समाने रखकर हवन किया जाता है । तत्लश्चात् अनन्त देव का ध्यान करके शुद्ध अनन्त को दाहिनी भुजा में बांधते हैं । इस व्रत में प्रायः एक समय अलोना बिना नमक का मीठा भोजन किया जाता है ।
अनन्त देव के सम्बन्ध में यह कथा प्रायः लोक में प्रचलित है कि जिस समय युधिष्ठिर अपना सत्र राजपाट हारकर वनवास कर रहे थे, उस समय कृष्ण उनसे मिलने आये । उनकी कष्टकथा सुनकर श्रीकृष्ण ने उन्हें अनन्त व्रत करने की राय दी । श्रीकृष्ण के आदेशानुसार युधिष्ठिर अनन्त व्रत कर अपने समस्त कष्टों से मुक्ति पा गये । इस व्रत के दिन ब्रह्मचर्य का पालन करना आवश्यक है ।
जैनागम में प्रतिपादित श्रनन्त व्रत की हिन्दुनों के अनन्त व्रत से तुलना करने पर यह निष्कर्ष निकलता है कि यह व्रत हिन्दुत्रों में जैनों से ही लिया गया है तथा जैनों के विस्तृत विधिपूर्ण व्रत का यह संक्षिप्त और सरल अंश है ।
अनंत व्रत कथा
भाद्रपद शुक्ला १३ तिथि के दिन व्रतों को पालन करने वालों को स्नान कर शुद्ध वस्त्र पहनकर सर्व प्रकार की पूजन सामग्री लेकर जिनमन्दिर में जावे वहां जाकर मन्दिर की तीन प्रदक्षिणा लगावे, ईर्यापथशुद्धि आदि क्रियाओं को करके साष्टांग जिनेन्द्र भगवान को नमस्कार करे, जिनमन्दिर के मण्डप को खूब सजावे, अनन्त व्रत का मण्डल, रंगोली से अथवा चांवलों को रंगाकर बनावे, ऊपर चंदोवा बांधे, सिंहासन अभिषेकपीठ पर, अनन्त यंत्र अनंत तीर्थंकर की यक्ष यक्षि सहित प्रतिमा स्थापन कर, अथवा चौबीस तीर्थंकरों की प्रतिमा स्थापन कर पंचामृताभिषेक करे, कन्याकत्रीत सूत्र के शास्त्रोक्त विधि से चौदह गांठे लगावे ।
(१) गांठ पहिली : - वृषभादि, अनन्तनाथ पर्यंत चौदह तीर्थंकरों के नाम मुख से उच्चारण करे, और पहिली गाँठ लगावे ।
(२) गांठ दूसरी : - सम्यक्त्व, ज्ञान, दर्शन, वीर्य, सूक्ष्मत्व, श्रवगाहनत्व, अगुरुलघुत्व, अव्याबाधत्व, अस्तित्व, वस्तुत, द्रव्यत्व, प्रमेयत्व, अमूर्तत्व, प्रदेशत्व, इस प्रकार सिद्धपरमेष्ठी के चौदह गुरण उच्चारण करके दूसरी गांठ लगावे ।