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________________ १३६ ] व्रत कथा कोष ढक देना चाहिए। घड़े पर पुष्पमालाए डालकर उसके ऊपर थाली प्रक्षाल करके रख देनी चाहिए । थाली में अनन्त व्रत का माड़ना मौर यन्त्र लिखना, पश्चात् चौबीसी एवं पूर्वोवत विधि से गांठ दिया हुआ अनन्त विराजमान करना होता है । अनन्त का अभिषेक कर चन्दन केशर का लेप किया जाता है। पश्चात् आदिनाथ से लेकर अनन्तनाथ तक चौदह भगवानों की स्थापना यन्त्र पर की जाती है । अष्ट द्रव्य से पूजा करने के उपरान्त “ॐ ह्रीं अर्हन्नमः अनन्तके वलिने नमः" इस मन्त्र को १०८ बार पढ़कर पुष्प चढ़ाना चाहिए अथवा पुष्पों से जाप करना चाहिए । पश्चात् ॐ ह्रीं क्ष्वी हंस अमृतवाहिने नमः, अनेन मन्त्रण सुरभिमुद्रां धृत्वा उत्तमगन्धोदकप्रोक्षणं कुर्यात् अर्थात् 'ॐ ह्रीं ६बी हं स अमृतवाहिने नमः' इस मन्त्र को तीन बार पढ़कर सुरभि मुद्रा द्वारा सुगन्धित जल से अनन्त का सिंचन करना चाहिए । अनन्तर चौदहों भगवानों की पूजा करनी चाहिए । ___ ॐ ह्रीं अनन्ततीर्थंकराय ह्रां ह्रीं ह्र ह्रौं ह्रः असि प्रा उसाय नमः सर्वशान्तिं तुष्टि सौभाग्यमायुरारोग्यैश्वामिष्टसिद्धि कुरू कुरू सर्वविघ्नविनाशनं कुरू कुरू स्वाहा । इस मन्त्र से प्रत्येक भगवान की पूजा के अनन्तर अर्ध्य चढ़ाना चाहिए । ॐ ह्रीं ह्रस अनन्तकेवली भगवान् धर्म श्रीबलायुरारोग्ययायभिवृद्धि कुरू कुरू स्वाहा । इस मन्त्र को पढ़कर अनन्त पर चढ़ाये हुए पुष्पों को प्राशिका एवं । 'ॐ ह्रीं अर्हन्नम : सर्वक मबन्धन विमुक्ताय नमः स्वाहा' इस मन्त्र को पढ़कर शान्ति जल की आशिका लेनी चाहिए । इस व्रत में 'ॐ ह्रीं अहं ह्र अनन्त केवलि नमः' मन्त्र का जाप करना चाहिए। पूर्णिमा को पूजन के पश्चात् अनन्त को गले या भुजा में धारण करें। अनन्त व्रत हिन्दनों में भी प्रचलित है। उनके यहां कहा गया है कि अनन्तस्य विष्णोराराधनार्थ" अर्थात् विष्णु भगवान की अराधना के लिए अनन्त चतुर्दशी व्रत किया जाता है । बताया गया है कि भादों सुदी चौदस के दिन स्नानादि के
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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