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फल क्या होगा ! उसको अपार पुण्यबंध होगा, उस पुण्य के प्रभाव से मनुष्य गति, उत्तम कुल जाति उत्तम संहनन, देव-गुरु-शास्त्र का सानिध्य, गुरु उपदेश की उपलब्धि, सुयोग्य द्रव्य, क्षेत्र काल, भाव आदि भाव प्राप्त होगा संयम धारण करने को भावना जाग्रत होगी, निकट भव्यता प्राप्त होगी। मिथ्यात्व अवस्था में संयमपूर्वक किया हुअा तप का ही प्रभाव है, जो ऐसी स्थिति में जीव को लाकर धर दिया, जिससे जीव मोक्ष जाने की पात्रता वाला बन गया । वह एक दिन अवश्य सम्यक्त्वी बनकर परम्परा से मोक्ष चला जायेगा।
क्या बिना पुण्य के जीव सम्यक्त्वरूप परिणमन कर सकता है ? नहीं कभी नहीं। प्रत्येक कार्य के लिए पुण्य की परम आवश्यकता है । इसलिए प्राचार्यों ने कहा है-हे भव्य जोव ! मोक्ष प्राप्ति के लिए अवश्य ही बुद्धिपूर्वक पुण्य करो । गुणभद्र स्वामो ने आत्मानुशासन में कहा है
"पुण्यं कुरूषुकृति पुण्यमनीहशोऽपि" इत्यादि ।
पुण्य करो, भव्य पुण्य करो बुद्धिपूर्वक पुण्य करो पुण्य करो, पुण्य तो सुख का कारण होगा ही, पुण्यात्मा जीव को एक न एक दिन अवश्य मोक्ष प्राप्त होगा ही।
जिसके पास पुण्य नहीं है, वह तो संसार में भी कुछ नहीं कर सकता। भोजन का एक ग्रास मुख में जाना हो तो भी भी पूर्व पुण्य चाहिए। मुह में जाने के बाद पेट में जाने के लिए भो पुण्य चाहिये नहीं तो मुह का ग्रास मुह में और हाथ का ग्रास हाथ में ही रह जाता है।
प्राचार्यों का पूर्ण उपदेश है कि भव्य जीवों को अवश्य ही इहलोक और परलोक के सुख के लिए पुण्य करना चाहिये। कुछ लोगों का कहना है कि पुण्य
य है पण्य से भी संसार बढता है तो क्या सचमुच में ही संसार बढता है ? नहीं प्राचार्यों ने कहीं पर भी यह बात नहीं कही है हां मात्र मिथ्यादृष्टि अभव्य के द्वारा किया हुआ पुण्य संसार वृद्धि का कारण हो सकता है। किन्तु भव्य मिथ्यादृष्टि का व सम्यगदष्टि का पुण्य कभी भी संसार को नष्ट करने का ही कारण होगा। जैसे-वज्रजंध श्रीमती ने चारण ऋद्धि मुनि को आहार दान दिया, रामचंद्र के जीव ने दस भव पहले रात्रि भोजन का त्याग किया, श्रीपाल ने रात्रि भोजन का त्याग किया. करकंदु के जीव ने ग्वाला की पर्याय में सहस्रदल कमल भगवान को चढ़ाया. सेठ सुदर्शन के जीव ने ग्वाला की पर्याय में मुनिराज की बात को हृदय में धारण किया था, इत्यादि जितने भी संसार से मुक्त हुए जीवों की दशा सुधरी और मोक्ष गये वे सब पहले मिथ्यादृष्टि हो थे और मिथ्यात्व के मंद उदय में किया हुआ पुण्य का उदय ही सम्यक्त्व उत्पति का भाव कराता है, अन्य अवस्था में नहीं।
___ रोटी तभी बन सकती है, जब पहले पूर्ण तय्यारी की हो, पूर्व तैयारी के अभाव में रोटी रूप कार्य नहीं बन सकता उसी प्रकार मिथ्यात्व कर्म के मन्द उदय में किये हुए पुण्य, जो दान, व्रत, संयम भक्ति पूजा तप देवदर्शन गुरुपदेश मुनिव्रत धारण करने के बाद पाले हुए अट्ठाईस मूल गुण, श्रावकों के बाह्य बारह व्रत, षट् कर्म प्रादि अनेक प्रकार की धार्मिक क्रिया रूप भूमिका से बंधने वाले पुण्य से ही