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व्रत कथा कोष
तक करना होता है । दशमी तिथि की हानि होने पर नवमी को व्रत और दशमी तिथि की वृद्धि होने पर जिस दिन पूर्ण दशमी हो उस दिन व्रत किया जाता है । वृद्धिगत तिथि छः घटी से अधिक हो तो भो दूसरे दिन व्रत करने का विधान नहीं है । यह व्रत वर्ष में तीन दिन से अधिक नहीं किया जाता है, तिथिवृद्धि होने पर भी एक दिन अधिक करने का नियम नहीं है ।
विवेचन :- प्रक्षयनिधि व्रत श्रावण सुदी दशमी, भादों वदी दशमी और भादों सुदी दशमी इन तीनों दशमी तिथियों को वर्ष में एक बार किया जाता है । इस व्रत का दूसरा नाम अक्षयफल दशमी व्रत भी है । अक्षयनिधि व्रत करने वाले को दशमी के दिन प्रोषध करना चाहिए । गृहारम्भ छोड़कर श्रीजिनमन्दिर में जाकर भगवान् प्रादिनाथ का अभिषेक और पूजन करना चाहिए । ॐ ह्रीं नमो ऋषभाय' इस मन्त्र का जाप उपवास के दिन १००८ बार करना चाहिए । रात्रि में जागरण, शक्ति न होने पर अल्पनिद्रा ली जाती है। धर्मध्यान व्रत के दिन विशेष रूप से किया जाता है । शीलव्रत श्रावण सुदी नवमी से लेकर भादों सुदी एकादशी तक इस व्रत के धारी को पालना चाहिए ।
अष्टदिक्कन्या व्रतकथा
व्रत विधि :- कार्तिक शुक्ला ६ को एकासन करना । आठ दिन तक प्रातःकाल स्नान कर शुद्ध वस्त्र पहन कर पूजा सामग्री लेकर चैत्यालय जायें । जिनेंद्र को नमस्कार करके नंदादीप जलाएं। श्री चन्द्रप्रभु की प्रतिमा श्यामज्वालामालिनी
क्षक्षी सहित स्थापित करके पंचामृताभिषेक करें। एक पाटे पर आाठ स्वस्तिक बनाकर उस पर पान गंधाक्षत फल वगैरह रखकर वृषभ से लेकर चन्द्रप्रभु पर्यन्त प्राठ तीर्थकरों की अष्टक, स्तोत्र जयमाला बोलते हुए प्रष्टद्रव्य से पूजा करें । श्रुत व गुरु की पूजा करना यक्ष यक्षी व ब्रह्मदेव की अर्चना करना । अष्टदिक्कन्यका की अर्चना करना ॐ ह्रीं श्रीचन्द्रप्रभाय श्यामज्वालामालिनीयक्षपक्षोसहिताय नमः स्वाहा " इस मन्त्र से १०८ सुन्दर सफेद पुष्प चढ़ायें । णमोकार मन्त्र का १०८ बार जाप करें । श्री जिनसहस्रनाम स्तोत्र पढ़कर श्री चंद्रप्रभ तीर्थंकर चरित्र पढ़ े | यह व्रतकथा पढ़ े । एक पात्र में आठ पान रखकर अष्टद्रव्य व एक नारियल रखकर महार्घ्य करे ।