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व्रत न था कोष
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चन्दन आदि से संस्कृत मिट्टी के घड़े को स्थापित कर, घड़े के ऊपर थाल रखा जाता है । थाल में अष्टकमलदल बनाकर भगवान् की प्रतिमा सिंहासन पर स्थापित की जाती है । इस विधि से प्रतिदिन भगवान् का अभिषेक और पूजन किये जाते हैं । अर्थात् श्रावण सुदी दशमी के दिन प्रतिमा घट के ऊपर स्थापित की जाती है, वह भादों वदी दशमी तक स्थापित रहती है । प्रतिदिन अभिषेक और पूजन होते रहते हैं । इस व्रत में प्रतिदिन दस अष्टक, दस प्रर्घ और दस फल चढ़ाये जाते हैं । प्रतिदिन तीनों समय सामायिक किया जाता है । तथा त्रेसठ शलाकापुरुषों के पुण्य चरित्रों का अध्ययन, मनन और चिन्तन आदि कार्य सम्पन्न किये जाते हैं ।
एकाशन के दिनों में भी प्रथम दिन माड़भात, द्वितीय दिन रसत्याग पूर्वक आहार, तृतीय दिन दूध त्याग सहित प्रहार, चतुर्थ दिन दही त्याग सहित आहार, पञ्चम दिन नमक त्याग सहित प्रहार, षष्ठ दिन नियमित रूप से एक ही अन्न का आहार, सप्तम दिन पुनः माड़भात, अष्टम दिन अलौना - बिना नमक और मीठे का भोजन, नवम दिन ऊनोदर, दशम दिन दही त्याग पूर्वक आहार, एकादशवें दिन माड़भात, द्वादशवें दिन एक अन्न आहार, त्रयोदशवें दिन परिगणित वस्तुओं का आहार, चौदहवें दिन ऊनोदर या माड़भात और पन्द्रहवें दिन उपवास किया जाता है | ये सभी दिन संयम के दिन कहलाते हैं । इनमें वाणीसंयम और इन्द्रियसंयम का पालन करना चाहिए । भादों वदी एकादशी को व्रत समाप्त होने के पश्चात् एकाशन किया जाता है। पश्चात् पूर्ववत् सारी क्रियाएं सम्पन्न होने लगती हैं । इस व्रत को विधि पूर्वक सम्पन्न करने से सभी लौकिक सिद्धियां प्राप्त होती हैं ।
क्षयनिधि व्रत की विधि
अक्षयनिधिनियमस्तु श्रावरणशुक्ला दशमी भाद्रपदशुक्ला तत्कृष्णा चेति दशमीत्रयं पञ्चवर्षं यावत् व्रतं कार्यम्; दशमोहोनौ तु नवम्यां वृध्दौ तु यस्मिन् दिने पूर्णा दशमी तस्मिन्नेव दिने व्रतं कार्यम्; वृद्धिगत तिथौ सोदयप्रमाणेऽपि व्रतं न कार्यम् ।
अर्थ :- क्षयनिधि व्रत श्रावण शुक्ला दशमी, भाद्रपदशुक्ला दशमी, भाद्रपद कृष्णा दशमी, इस प्रकार तीन दशमियों को किया जाता है । यह व्रत पांच वर्ष