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________________ १२२ ] व्रत कथा कोष ओं ह्रीं श्री ह्री धृति कीति बुद्धि लक्ष्मी शान्तिपुष्टयः श्रीदिक्कुमार्यो जिनेन्द्रमहाभिषेक कलशमुखेष्वेतेषु नित्यविशिष्टः भवत भवत स्वाहा । तोर्थेनानेन तीर्थान्तरदुरधिगमोदार दिव्यप्रभावः स्फूर्जतीर्थोत्तमस्य प्रथितजिनपतेः प्रेषितप्राभृताभान् । श्रीमुख्यख्यातदेवीनिवह कृतमुखाद्यासनोभूतशक्ति प्रागल्भ्यानुद्ध रामो जयजयनिनदे शातकुम्भीयकुम्भान् ।। इस श्लोक को पढ़कर जलशद्धि विधानपूर्वक करे । विसर्जन करके जलकलशों को सौभाग्यवतो स्त्रियों अथवा कन्याओं द्वारा ले आना चाहिए । कलशों की संख्या ६ रहती है। जल लाकर भगवान का अभिषेक करना चाहिए । अभिषेक के पश्चात् निम्न मन्त्र पड़कर के शर मिश्रित जलधारा छोड़नी चाहिए। ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं प्रहं नमोऽहते भगवते श्रीमते प्रक्षीणाशेषदोषकल्मषाय दिव्यतेजोमूर्तये नमः श्री शान्तिनाथाय शान्तिकराय सर्वविघ्नप्रणाशनाय सर्वरोगापमृत्युविनाशनाय सर्वपरकृतक्षुद्रोपद्रवविनाशनाय सर्वक्षामरकामरविनाशनायॐ ह्रां ह्रीं ह्रह्रौं हम सि आ उ सा पवित्रतर गन्धोदकेन जिनमभिषिञ्चामि । मम सर्वशान्ति कुरु कुरु तुष्टि कुरु कुरु पुष्टि कुरु कुरु स्वाहा । जल लाने के उपरान्त महाभिषेक, तदनन्तर स्वस्ति मङ्गलविधान करे। पश्चात् सकलीकरण की क्रिया करनी चाहिए । यह सकलीकरण की क्रिया स्नानोपरान्त जलयात्रा के पूर्व भी की जा सकती है । परन्तु उत्तम मार्ग यही है कि जलयात्रा के उपरान्त सकलीकरण क्रिया की जाय । इसके पश्चात् मङ्गलाष्टक, सहस्रनाम आदि स्वस्तिविधान एवं रत्नत्रय व्रतोद्यापन की पूजा करनी चाहिए । पूजन के पश्चात् निम्न मन्त्र पढ़कर संकल्ल छोड़ना चाहिए । संकल्प, सुपाड़ी, हल्दी, पीली सरसों और एक पैसा रहना चाहिए। प्रों अथ भगवतो महापुरुषस्य श्रीमदादिब्रह्मणो मते त्रैलोक्य मध्यमध्यासीने मध्यलोके श्रीमदनावतयक्षसंसेव्यमाने दिव्यजम्बूवृक्षोपलक्षितजम्बूद्वीपे महनीयमहामे. रोदक्षिणभागे अनादिकालसंसिद्धभरतनामधेयप्रविराजितषट्खण्डमण्डितभरतक्षेत्रे सकल
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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