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व्रत कथा कोष
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शलाकापुरुषसम्बन्धविराजितायखण्डे परमधर्मसमाचरण (इस स्थान पर अपने प्रदेश का नाम जोड़ना चाहिए ) प्रदेशे अस्मिन् विनेयजनताभिरामे (इस स्थान पर अपने नगर का नाम जोड़ना चाहिए ) नगरे अस्मिन् दिव्यमहाचैत्यालय प्रदेशे एतदवसपिपीकालावसाने प्रवृत्तसुवृत्तचतुर्दशमनूपमान्वितसकललोकव्यवहारे श्री वृषभस्वामि पौरस्त्यमङ्गलमहापुरुषपरिषत्प्रतिपादित परमोपशमपर्वक्रमे वृषभसेनसिंहसेनचारुसेनादिगणगणधरस्वामिनिरुपितविशिष्टधर्मोपदेशे पञ्चमकाले प्रथमपादेमहतिमहावीरवर्धमानतीर्थङ्करोपदिष्टसद्धर्मव्यतिकरेश्रीगौतमस्वामिप्रतिपादितसन्मार्गप्रर्वतमाने श्रीरिणकमहामण्डलेश्वरसमाचरितसन्मार्गविशेषे ......मितेविक्रमांक भाद्रपदमासे शुक्लपक्षे पूणिमायांतियौ.........वासरे प्रशस्ततारकायोगकरणनक्षत्रहोरामुहूर्त लग्नयुक्तायाम् अष्टमहाप्रातिहार्य शोभितश्रीमदर्हत्परमेश्वरसन्निधौ अहं.........रत्नत्रयनामक व्रतं स्थापयामि प्रों ह्रां ह्रीं ह्रह्रौं ह्रः असिग्राउसा सर्वशान्तिर्भवतु सर्वकल्यारणं भवतु श्री क्लीं नमः स्वाहा।
जलधारा के पश्चात् गन्धोदक लेने का मन्त्रमुक्तिश्रीवनिताकरोदकमिदं पुण्यांकरोत्पादक नागेन्द्र त्रिदशेन्द्रचक्रपदवीराज्याभिषेकोदकम् ।। सम्यग्ज्ञानचरित्रदर्शनलतासंवृद्धिसंपादकं ।
कोतिश्रीजयसाधकं तव जिनस्नानस्य गन्धोदकम् ॥ इसके अनन्तर पुण्याहवाचन, शान्ति, विसर्जन आदि को सम्पन्न करे । रत्नत्रयव्रतोद्यापन की सामग्री :
उद्यापन के लिए पूजन सामग्री, रत्नत्रय यन्त्र, तेरह शास्त्र, मन्दिर के लिए तेरह पूजन के बर्तन, छत्र, चमर, झारी आदि मंगलद्रव्य, चंदोवा तथा नगदी रूपये दान देना चाहिए । उद्यापन के उपरान्त साधर्मी भाइयों के तेरह घरों में फल भेजना चाहिए। यदि शास्त्र और पूजन के बर्तन तेरहतेरह देने की शक्ति न हो तो कम से कम तीन । अवश्य देने चाहिए। इस व्रत का उद्यापन तीन वर्षों में किया जाता है । पूजन में चढ़ाने के लिए ६३ चांदो के स्वस्तिक, इतनी ही सुपारियां, चार नारियल रहने चाहिए। ये नारियल प्रत्येक वलय की पजा