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ब्रत कथा कोष
श्वेत रंग के चावलों से मण्डल बनाना चाहिए । इस मण्डल में कुल ६३ कोठे होते हैं । मण्डल गोलाकार बनता है । मण्डल के बीच में "ॐ ह्रीं रत्नत्रयव्रताय नमः लिखें। इसके पश्चात् दूसरा मण्डल सम्यग्दर्शन का होता है । इसके बारह कोठे हैं । तीसरा मण्डल सम्यग्ज्ञान का होता है, इसके ४८ कोठे हैं। चौथा मण्डल सम्यक्चारित्र का होता है, इसके ३३ कोठे हैं।
___घट यात्रा विधि :-मन्दिर में सर्वप्रथम भगवान् के अभिषेक के लिए जल लाने की क्रिया करे । जलयात्रा की विधि-समस्त उद्यापनों के लिए जलयात्रा का विधान यह है कि सौभाग्यवती स्त्रियां घर से तूल में लिपटे और कलावा से सुसंस्कृत नारियलों से ढ़के कलश जलाशय के पास ले जावें । जलाशय के पूर्वभाग या उत्तर भाग में भूमि को जल से धोकर पवित्र करे । पश्चात् उस भूमि पर चावलों का चौक बनाकर चावलों का पुञ्ज रखें और कलशों को उन पर स्थापित कर दिया जाय । चौक के चारों कोनों पर दीपक जलाना चाहिए । पश्चात् निम्न विधान कर कुएँ से जल निकाला जाय ।
पद्मापादनतो महामृतभवानन्दप्रदाना नणां । जैनो मार्ग इवावभासिविमलो योगीव शीतीभवन् । जैनेन्द्रस्तपनोचितोदकतया क्षीरोदवत्तत्सतां । ।
पूज्यं त्वां शुभशुद्ध जीवननिधि कासारसंपूजये ॥१॥ 'ॐ ह्रीं पद्माकराय मध्यं निर्वपामीति स्वाहा पढ़कर' जलाशय कुएं पर अर्घ चढ़ावे ।
श्रीमुख्यदेवीः कुलशैलमूर्धपद्मादि पद्माकरपद्मसक्ताः ।
पयःपटीराक्षतपुष्पहव्य प्रदीपधूपोद्ध फलैः प्रयक्ष्ये ।।२।।
ॐह्रीं श्रोप्रभृतिदेवताभ्यः इदं जलादि अध्य निर्वपामीति स्वाहा। यहां से जलाशय की पूजा करे।
गङ्गादिदेवीरतिमङ्गलाङ्गा गङ्गादि विख्यातनदीनिवासाः । पयःपटीराक्षतपुष्पहव्यप्रदीपधूपोद्ध फलैः प्रयक्ष्ये ॥३॥