________________
व्रत कथा कोष
। ११६
का स्वरूप समझाकर रत्नत्रय (सम्यग्दर्शन, सम्यरज्ञान सम्यक् चारित्र ) मोक्षमार्ग का कथन किया और सागार ( गृहस्थ ) धर्म का तथा अनगार ( साधु ) धर्म का उपदेश दिया जिसे सुनकर निकटभव्य ( जिनकी संसार-स्थिति थोड़ी रह गई है अर्थात् मोक्ष होना निकट रह गया है ) जीवों ने यथाशक्ति मुनि अथवा श्रावक के व्रत धारण किये । तथा जो शक्तिहीन जीव थे और जिनको दर्शनमोह का उपशम व क्षय हुआ था। सो उन्होंने सम्यक्त्व ही ग्रहण किया। इस प्रकार जब वे भगवान धर्म का स्वरूप कथन कर चुके, तब उस सभा में उपस्थित परम श्रद्धालु भक्त राजा श्रेणिक ने विनय युक्त नम्रीभूत हो श्री गौतम स्वामी ( गणधर ) से प्रश्न किया कि हे प्रभु व्रत को विधि किस प्रकार है और इस व्रत को किसने पालन किया तथा क्या फल पाया ? सो कृपाकर कहो, ताकि हीनशक्तिधारी जीव भी यथाशक्ति अपना कल्याण कर सके और जिनधर्म की प्रभावना होवे ।
नोट :- इस भूमिका को प्रत्येक व्रतकथा को पढ़ते समय पहले पढ़ना फिर व्रतकथा पढ़ना चाहिए, अवश्य ध्यान रखें । बहुत ही पुण्यसंचय होगा।
__ जिस व्रतविधि के आगे कथा नहीं है वहां इस कथा को पढ़। जिसमें उद्यापन विधि नहीं लिखो है वहां सामान्यतया पंचपरमेष्ठि विधान या चौबीसी विधान कर, दान पूजादिक देकर, मंदिर में उपकरणादि भेंट कर हाथ जोड़ लेना चाहिए।
व्रतों के उद्यापन व्रत-विधान अवगत हो जाने पर उनके उद्यापन की विधि का जान लेना आवश्यक है । सम्यक् प्रकार अनुष्ठान के बाद उद्यापन कर देने पर ही व्रतों का फल प्राप्त होता है । उद्यापन की विधि निम्न प्रकार हैरत्नत्रय व्रत के उद्यापन की विधि :- .....
इस व्रत का उद्यापन भाद्रपद शुक्ला पूर्णिमा को किया जाता है अथवा पञ्चकल्याणक प्रतिष्ठा के अवसर पर कभी भी किया जा सकता है । उद्यापन करने के दिन श्री मन्दिर जी में जाकर सर्वप्रथम एक गोल चौकी या टेबल पर रत्नत्रय व्रतोद्यापन का मण्डल बनाना (मांडना) चाहिए । चौकी चार फुट लम्बी और इतनी हो चौड़ी होनी चाहिए । चौकी पर श्वेत वस्त्र बिछाकर लाल, पीले, हरे, नीले और