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व्रत कथा कोष
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अभिषेकैजिनेन्द्राणामत्युदारैश्च पूजनैः । दानरिच्छभिपूरैश्च क्रियतामशुभेरणम् ॥ एवमुक्ता जगी सीता देव्यः साधुसमीरितम् । दानं पूजाभिषेकश्च तपश्चाशुभसूदनम् ॥
__ पद्मपुराण पर्व ६६ भावार्थ :- यहां सीता से कहा गया है कि हे देवि, अशुभ कर्म को दूर करने के लिए श्री जिनेन्द्र भगवान् का अभिषेक तथा पूजन करो और दान दो, इसे सीता ने स्वीकार किया।
इतीमं निश्चयं कृत्वा दिनानां सप्तकं सती । श्री जिनप्रतिविम्बामां स्नपन सा तदाकरोत् ॥
षट्कर्मोपदेशमाला भावार्थ :-वह मदनावली रानी प्रायिका के उपदेशानुसार मुनिनिदा से उत्पन्न हुए रोग की शान्ति के अर्थ सात दिन तक तीनों समय श्री जिनेन्द्र भगवान् का अभिषेक पूर्वक पूजन करती भई ।
श्री जिनेन्द्रपदाम्भोजसपर्यायां सुमानसाः । शचीव सा तदा जाता जैनधर्म परायणा ।।
गौतम चरित्रे भावार्थ :-- वह स्थंडिली नाम की बाह्मणी जिन भगवान की पूजा में अपना चित्त लगाती थी, और इन्द्राणी के समान जैन धर्म में तत्पर हो गई थी।
नित्यं श्रीमज्जिनेन्द्रमा पूजां कल्याणाधिनीम् । पाबदानं व्रतं शीलं सोपवासं सुनिर्मलम् ॥
पाराधना कथाकोषे भावार्थ :-वह नीली बाई प्रतिदिन कल्याण देने वाले श्री जिनेन्द्र पूजन, पात्रदान, व्रत, शील, उपवास आदि उत्तम कार्यों में तल्लीन रहती थी।
व्रतों को दो तरह की मर्यादा ___---- नियमः परमितकालो यावज्जीबं यमो ध्रियते ।
भावार्थ :-काल मर्यादा के साथ जो व्रत धारण किया जाता है वह नियम है । और जो व्रत जीवन पर्यन्त को ग्रहण किया जाता है वह यम है ।