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________________ ११० ] व्रत कथा कोष और 'शील व्रत धारण किया, कुछ समय बाद उन्होंने जिनमन्दिर में जाकर मन वचन काय की शुद्धि-पूर्वक श्री जिनेन्द्र भगवान् की बड़ी पूजा की। गृहीतगंधपुष्पादिप्रार्थना सपरिच्छदा । प्रथैकदा जगामैषा प्रातरेव जिनालयम् ॥ त्रिः परीत्य ततः स्तुत्वा जिनांश्च चतुराशया। संस्नाप्य पूजयित्वा च प्रयाता यति संसदि ।। जिनदत्त चरित्र भावार्थ :-एक दिन सेठानी जीवंजसा स्नान आदि से शुद्ध होकर दासदासियों के साथ सवेरे ही जिनमन्दिर में भगवान जिनेन्द्रदेव के दर्शन के लिए गई । वहाँ पहुँचकर उसने पहिले तो जिनेन्द्रदेव की तीन प्रदक्षिणा दी और बाद स्तुतिपूर्वक भगवान का बिबाभिषेक किया, पूजा की और फिर वह मुनियों की सभा में गई। प्रर्थकदा सुता सा च सुधी मदनसुन्दरी । कृत्वा महाभिषेकाय जिनानां सुखकोटिदम् ।। श्रीपाल चरित्र भावार्थ :-एक दिन गुणवती वह मैनासुन्दरी करोड़ों सुखों के देने वाले जिनेन्द्र भगवान् का महा अभिषेक करती भई । तदा वृषभसेना घ प्राप्य राज्ञी पदं महत् । दिव्यां भोगान्प्रभुजाना पूर्वपुण्यप्रसादतः ॥ पूजयंती जगत्पूज्यान् जिनान स्वर्गापवर्गदान । दिव्यैरष्टमहाद्रव्यैः स्नपनादिभिरुज्जवलैः ॥ आराधना कथाकोष भावार्थ :-पूर्वपुण्य के प्रभाव से उस वृषभसेना ने महारानी के पद को प्राप्त किया। तथा स्वर्ग और मोक्ष देने वाले श्री जिनेन्द्र भगवान की अभिषेक पूर्वक प्रष्टद्रव्य से पूजा की।
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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