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व्रत कथा कोष
और 'शील व्रत धारण किया, कुछ समय बाद उन्होंने जिनमन्दिर में जाकर मन वचन काय की शुद्धि-पूर्वक श्री जिनेन्द्र भगवान् की बड़ी पूजा की।
गृहीतगंधपुष्पादिप्रार्थना सपरिच्छदा । प्रथैकदा जगामैषा प्रातरेव जिनालयम् ॥ त्रिः परीत्य ततः स्तुत्वा जिनांश्च चतुराशया। संस्नाप्य पूजयित्वा च प्रयाता यति संसदि ।।
जिनदत्त चरित्र भावार्थ :-एक दिन सेठानी जीवंजसा स्नान आदि से शुद्ध होकर दासदासियों के साथ सवेरे ही जिनमन्दिर में भगवान जिनेन्द्रदेव के दर्शन के लिए गई । वहाँ पहुँचकर उसने पहिले तो जिनेन्द्रदेव की तीन प्रदक्षिणा दी और बाद स्तुतिपूर्वक भगवान का बिबाभिषेक किया, पूजा की और फिर वह मुनियों की सभा में गई।
प्रर्थकदा सुता सा च सुधी मदनसुन्दरी । कृत्वा महाभिषेकाय जिनानां सुखकोटिदम् ।।
श्रीपाल चरित्र भावार्थ :-एक दिन गुणवती वह मैनासुन्दरी करोड़ों सुखों के देने वाले जिनेन्द्र भगवान् का महा अभिषेक करती भई ।
तदा वृषभसेना घ प्राप्य राज्ञी पदं महत् । दिव्यां भोगान्प्रभुजाना पूर्वपुण्यप्रसादतः ॥ पूजयंती जगत्पूज्यान् जिनान स्वर्गापवर्गदान । दिव्यैरष्टमहाद्रव्यैः स्नपनादिभिरुज्जवलैः ॥
आराधना कथाकोष भावार्थ :-पूर्वपुण्य के प्रभाव से उस वृषभसेना ने महारानी के पद को प्राप्त किया। तथा स्वर्ग और मोक्ष देने वाले श्री जिनेन्द्र भगवान की अभिषेक पूर्वक प्रष्टद्रव्य से पूजा की।