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________________ व्रत कथा कोष tee किसी फल प्राप्ति के जो व्रत किये जाते हैं, वे अकाम्य कहलाते हैं । उत्तम फल की प्राप्ति के लिए जो व्रत किये जाते हैं, वे उत्तमार्थ व्रत हैं । इस प्रकार नौ तरह के व्रत बतलाये गये । इन व्रतों के करने से उत्तम भोगोपभोग की प्राप्ति होती है तथा कर्मों की निर्जरा होने से कर्मभार भी हलका होता है । निरवधि व्रतों में कवलचान्द्रायण, तपोञ्जलि, जिनमुखावलोकन, मुक्तावली, द्विकावली बताये हैं । कवलचान्द्रायण व्रत का प्रारम्भ किसी भी मास में किया जा सकता है, यह अमावस्या को आरम्भ होकर अगले महिने की चतुर्दशी को समाप्त होता है तथा इसकी अमावस्या को पारणा की जाती है । प्रथम अमावस्या को प्रोषधोपवास कर प्रतिपदा को एक ग्रास प्रहार, द्वितीया को दो ग्रास, तृतीया को तीन ग्रास, चतुर्थी को चार ग्रास, पञ्चमी को पाँच ग्रास, षष्ठि को छः ग्रास, सप्तमी को सात ग्रास, अष्टमी को आठ ग्रास, नवमी को नौ ग्रास, दशमी को दस ग्रास, एकादशी को ग्यारह ग्रास, द्वादशी को बारह ग्रास, त्रयोदशी को तेरह ग्रास, चतुर्दशी को चौदह ग्रास और पूर्णिमा को पन्द्रह प्रतिपदा को पुनः चौदह ग्रास, द्वितीया को तेरह ग्रास, तृतीया को बारह ग्रास, चतुर्थी को ग्यारह ग्रास, पञ्चमी को दस ग्रास, षष्ठि को नौ ग्रास, सप्तमी को आठ ग्रास, अष्टमी को सात ग्रास, नवमी को छः ग्रास, दशमी को पांच ग्रास, एकादशी को चार ग्रास, द्वादशी को तीन ग्रास, त्रयोदशी को दो ग्रास और चतुर्दशी को एक ग्रास आहार लेना चाहिए । अमावस्या के अनन्तर जिस प्रकार चन्द्रकलाओं की वृद्धि होती है, आहार के ग्रासों की भी वृद्धि होती चली जाती है । तथा चन्द्रकलाओं के घटने पर ग्राससंख्या भी घटती जाती है । इस व्रत का नाम कवलचान्द्रायण इसी - लिए पड़ा है कि चन्द्रमा की कलामों की वृद्धि और हानि के साथ भोजन के कवलों की हानि और वृद्धि होती है । ग्रास, जिनमुखावलोकन व्रत भी भाद्रपद कृष्णा प्रतिपदा से आश्विन कृष्णा प्रतिपदा तक किया जाता है । इस व्रत में सबसे पहले श्री जिनेन्द्र का दर्शन करना चाहिए, अन्य किसी व्यक्ति का मुंह नहीं देखना चाहिए । प्रतिपदा को प्रोषधोपवास कर षष्ठि को पारा, सप्तमी को प्रोषधोपवास कर अष्टमी को पारणा, नवमी को प्रोषधोपवास कर दशमी को पारणा करनी चाहिए । इसी प्रकार एक दिन उपवास, अगले दिन पारणा करते हुए भाद्रपद मास को बिताना चाहिए । पारणा के दिन
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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