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व्रत कथा कोष
बाधाएं आती हुई दिखलाई पड़ती हैं, परन्तु अध्यबसाय द्वारा कार्य सिद्ध होने में विलम्ब नहीं लगता है ।
चौथे मुहूर्त का द्वितीय भाग भी श्रानन्द संज्ञक है । इसके ५ पलों में अमृत रहता है । जो व्यक्ति इसके अमृत भाग में कार्य करता है या अपने आत्मिक उत्थान में आगे बढ़ता है, वह निश्चिय ही सफलता प्राप्त करता है । इसका तीसरा भाग जिसे अन्त भाग कहा जाना है, साधारण है । इसमें कार्य करने पर कार्य में विशेष सफलता नहीं मिलती है। अधिक परिश्रम करने पर भी फल अल्प मिलता है । जो व्यक्ति इस भाग में माङ्गलिक कार्य प्रारम्भ करते हैं, उनके वे कार्य प्रायः असफल ही रहते हैं ।
पाँचवां दैत्य नाम का मुहूर्त्त है जो कि सूर्योदय के तीन घण्टा १२ मिनट पश्चात् प्रारम्भ होता है । यह शक्तिशाली, प्रमादी, क्रूर स्वभाव वाला और निद्रालु होता है । इसके आदि भाग में कार्य प्रारम्भ करने पर विलम्ब से होता है, मध्य भाग के कार्य में नाना प्रकार के विघ्न आते हैं । चंचलता आदि रहती है तथा उग्र प्रकृति के कारण झगड़ - भट तथा अनेक प्रकार से बाधाएं उत्पन्न होती हैं । ग्रन्त भाग अशुभ होते हुए भी शुभ फलदायक है । इसमें श्रमसाध्य कार्यों को प्रारम्भ करना हितकारी माना गया है । जो व्यक्ति खर और तीक्ष्ण कार्यों को अथवा उपयोगी कलाओं के कार्यों को प्रारम्भ करता है । उसे इन कार्यों में बहुत सफलता मिलती है ।
छठवां वैरोचन मुहूर्त्त सूर्योदय के चार घण्टे के उपरान्त प्रारम्भ होता है । इस मुहूर्त्त का स्वभाव अभिमानो, महत्वाकांक्षी और प्रगतिशील माना गया है । इसका आदि भाग सिद्धिदायक, मध्य भाग हानिप्रद और अन्त भाग सफलतादायक होता है । इस मुहूर्त्त में दान, अध्ययन, पूजा-पाठ के कार्य विशेष रूप से सफल होते हैं । जो व्यक्ति एकाग्रचित्त से इस मुहूर्त्त में भगवान का भजन, पूजन, स्मरण और गुणानुवाद करता है, वह अपने लौकिक और पारलौकिक सभी कार्यों में सफलता प्राप्त करता है । इस मुहूर्त्त का उपयोग प्रधान रूप से धार्मिक कृत्यों में करना चाहिए ।
सातवां मुहूर्त्त वैश्वदेव नाम का है, इसका प्रारम्भ सूर्योदय के चार घंटा ४८ मिनट के उपरान्त होता है । यह मुहूर्त्त विशेष शुभ जाना जाता हैं, परन्तु कार्य करने