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________________ व्रत कथा कोष [ ६३ चतुर्दशी को अपना पूर्ण प्रभाव दिखलाता है । इसका स्वभाव मृदु, स्नेहशील, कर्त्तव्यपरायण और धर्मात्मा माना है । इसके भी तीन भाग हैं- आदि, मध्य और अन्त आदि भाग शुभ, सिद्धिदायक, मंगलकारक एवं कल्याणप्रद होता है । इसमें जिस कार्य का प्रारम्भ किया जाता है, वह कार्य अवश्य सफल होता है । तल्लीनता और कार्य करने में रुचि विशेषलः जागृत होती है । विघ्नबाधाएं उत्पन्न नहीं होतीं । तीसरे मुहूर्त का मध्य भाग सबल, विचारक, अनुरागी और परिश्रम से भागने वाला होता है । इसका स्वभाव उदासीन माना है । यद्यपि इसमें आरम्भ किये जाने बाले कार्यों में नाना प्रकार की बाधाएं उत्पन्न होती हैं, ऐसा प्रतीत होता है कि कार्य अधूरा ही रह जायगा फिर भी काम अन्ततोगत्वा पूरा हो ही जाता है । इस भाग का महत्व अध्ययन-अध्यापन एवं प्राराधन के लिए अधिक है । स्वाध्याय प्रारम्भ करने के लिए यह भाग श्रेष्ठ माना गया है । जो व्यक्ति गरिणत से तीसरे मुहूर्त के मध्य भाग को निकालकर उसी समय में विद्यारम्भ या अक्षरारम्भ करते हैं, वे विद्वान बन जाते हैं । यों तो इस समस्त मुहूर्त में सरस्वती का निवास रहता है । पर विशेषरूप से इसी भाग में सरस्वती का निवास है । तीसरे मुहूर्त का अन्तिम भाग व्यापार, अध्यवसाय, शिल्प आदि कार्यों के लिए प्रशस्त माना है । इस भाग में किये जाने वाले कार्य कठोरश्रम से पूरे होते हैं । इस भाग का स्वभाव मिलनसार, लोक व्यवहारज्ञ और लोभ माना गया है । इसी कारण व्यापार और बड़े बड़े व्यवसायों के प्रारम्भ करने के लिए इसे प्रशस्त बतलाया है । यह मुहूर्त स्थिरसंज्ञक भी है, प्रतिष्ठा गृहारम्भ, कूपारम्भ, जिनालयारम्भ, व्रतोपनयन आदि कार्य इस मुहूर्त में विधेय माने गये हैं । चौथा सारभट नाम का मुहूर्त सूर्योदय के दो घण्टा ३६ मिनट पश्चात् प्रारम्भ होता है । इसका समय भी दो घटी अर्थात् ४८ मिनट है । इस मुहूर्त की विशेषता यह है कि प्रारम्भ में यह प्रमादी उत्तर काल में श्रमशील, विचारक और स्नेही होता है । इसके भी तीन भाग हैं- आदि, मध्य और अन्त । आदि भाग शक्तिशाली अध्यवसायी, कार्यकुशल और लोकप्रिय होता है । इस भाग में कार्य करने पर कार्य सफल होता है, किन्तु प्रध्यवसाय और परिश्रम की आवश्यकता पड़ती है । पूजा-पाठ धार्मिक अनुष्ठान एवं शान्ति पौष्टिक कार्यों के लिए यह ग्राह्य माना गया है । इसमें उक्त कार्य किये जाने पर प्रायः सफल होते हैं, यद्यपि कार्य अन्त होने पर विघ्न
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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