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________________ व्रत कथा कोष इसका नाम वार्षिक अधिकमास या शुद्धि है। क्योंकि सौर और चान्द्र दिनों के अन्तर में अधिकमास होता है । अथवा अनुपात करने पर कल्पवर्षों में कल्पाधिकमास तो एक वर्ष में कितने ? से भी उपर्युक्त वार्षिक अधिकमास आ जाता है। सावन दिन घटी आदि = ०/१५/३०/२२/३० अवम दिन घटी आदि = ०!४८/२२/७ /३० अधिशेष = ११/३/५२/० दिनादि+क्षयाहादि अथवा अनुपात किया एक वर्ष में ११/३/५२/३० अधिकमास आता है तो गत वर्षों में कितने ? यहां सुविधा के लिए गुणक के दो खण्ड कर दिये-एक १० का और दूसरा पूर्वसाधित १/३/५२/३० का। इस प्रकार दिनादि और अवमादि के योग में दस गुरिणत वर्षसंख्या जोड़ने पर अधिक दिन आये, इनमें तीस का भाग देने पर अधिकमास होता है । अतः दिनादि + क्षयादि+१०४ वर्षगण . वषगण : अधिकमास । यहां शकाब्द के अनुसार गणित ३० कर कुछ अधिक मासों की सूची दी जा रही है शकाब्द विक्रम सं. अधिकमास शकाब्द विक्रम सं. अधिकमास प्राषाढ़ वैशाख ज्येष्ठ वैशाख पाश्विन भाद्रपद १८७२ १८७५ १८७७ १८८० १८८३ १८८५ १८८६ १८८८ १८६१ १८६४ २००७ २०१० २०१२ २०१५ २०१८ २०२० २०२१ २०२३ २०२६ २०२६ श्रावण ज्येष्ठ आश्विन चैत्र श्रावण आषाढ़ वैशाख १६२६ १९३२ १९३४ १६३७ १६४० १९४२ १६४५ १९४८ १९५१ १९५३ २०६४ २०६७ २०६६ २०७२ २०७५ २०७७ २०८० २०८३ २०८६ २०५८ प्राषाढ़ ज्येष्ठ आश्विन श्रावण ज्येष्ठ चैत्र प्राश्विन
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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