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व्रत कथा कोष
यदि वर्ष में एक मास अधिक हो तो पहले वाले मास में व्रत नहीं करना चाहिए, किन्तु आगे वाले मास में व्रत करना चाहिए।
विवेचन--सौर और चान्द्रमास में अन्तर रहने के कारण दो वर्ष छोड़कर तीसरे वर्ष में एक मास की वृद्धि हो जाती है, जो अधिकमास कहलाता है । इसका नाम शास्त्रकारों ने मलमास भी रखा है । यह अधिकमास चैत्र से लेकर आश्विन तक पड़ता है अर्थात् चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद और आश्विन ये ही महिने वृद्धि को प्राप्त होते हैं । इसका प्रधान कारण यह है कि सूर्य मन्द गति से गमन करता है और चन्द्रमा तेज गति से । इसलिए प्रति महिने मे अधिशेष की वृद्धि होती जाती है । जब दो महिनों में एक संक्रान्ति पड़ती है, तब अधिकमास आता है । बात यह है कि व्यवहार में चन्द्रमास लिए जाते हैं । प्रतिपदा से लेकर पूर्णिमान्त चान्द्रमास की गणना होती है। सौरमास संक्रान्ति से लेकर संक्रान्ति तक होता है, यह पूरे ३० दिन का होता है। चन्द्रमास २६ दिन के लगभग होता है तथा जिस दिन चन्द्रमास प्रारम्भ होता है, उस दिन सौरमास नहीं । सौरमास सदा चान्द्रमास से आगे पीछे प्रारम्भ होता है, इसी कारण तीन वर्षों में एक महीने की वृद्धि हो जाती है ।
अधिकमास का पानयन गणित से निम्नप्रकार किया जाता है । दिनादि और अवम का योग करके दस गुणित कर वर्षगण में जोड़कर तीस का भाग देने पर उत्तर में अधिकमास संख्या होती है।
सावन दिन और चान्द्र दिन का अन्तर अवम होता है। इसलिए सावन दिन और अवम के योग से चान्द्र दिन सिद्ध होते हैं। एक वर्ष में सावन दिन = ३६५/ १५/३०/२२/३०
अवम दिन - ५/४८/२२/७/३० एक वर्ष में चान्द्र दिन - ३७१/३/५२।३० " सौर दिन = ३६०/0/0/0
= ११/३/५२।३० एक वर्ष में इतने दिनादि बढ़ जाते हैं।