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________________ ७६ ] व्रत कथा कोष शकाब्द विक्रम सं. अधिकमाम शकाब्द विक्रम सं.... अधिकमास आश्विन श्रावण ज्येष्ठ प्राषाढ़ ज्येष्ठ प्राश्विन पाश्विन श्रावण २०३१ २०३४ २०३७ २०३६ २०४२ २०४५ २०४८ २०५० २०५३ २०५६ २०५८ २०६१ १८६६ १६०२ १६०४ १६०७ १६१० १६१३ १६१५ १६१८ १६२१ १६२३ १६२६ १९८६ श्रावण ज्येष्ठ चैत्र आश्विन १६५६ ____२०६१ १६५६ २०१४ २०६६ १६६४ २०६६ १६६७ २१०२ १९७० २१०५ १९७२ २१०७ १९७५ २११० १६८८ २११३ १९८१ २११६ १९८३ २११६ १९८६ २१२२ १६६१ २१२७ ज्येष्ठ वैशाख आश्विन प्राषाढ़ ज्येष्ठ प्राश्विन प्राषाढ़ वैशाख आश्विन श्रावण ज्येष्ठ श्रावण चैत्र २११५ श्रावण इस प्रकार अधिकमास का परिज्ञान कर जिस मास की वृद्धि हो उसके अगले वाले मास में व्रत करना चाहिए । जैसे श्रावण मास अधिकमास है तो दो श्रावरणों में से पहले श्रावण मास में व्रत नहीं किया जायगा, किन्तु दूसरे श्रावण में व्रत करना पड़ेगा। मास-क्षय होने पर व्रत के लिए व्यवस्थामासहानौ कि कर्त्तव्यमिति चेत्तदाह संवत्सरे यदि भवेन्मासो वै होयमानकः । पूर्वस्मिश्च व्रतं कार्य परस्मिन्न तु योग्यता ॥ अर्थः-मासहानि में क्या करना चाहिए ? उत्तर देते हैं कि संवत्सर में यदि मासहानि हो तो पूर्व के महिने में व्रत करना चाहिए, आगे वाले महिने में नहीं । व्रत की योग्यता पूर्वमास में ही होती है, उत्तरमास में नहीं। विवेचन-जैसे अधिकमास होता है, वैसे ही क्षयमास भी होता है । कभी
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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