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व्रत कथा कोष
होगा; क्योंकि व्रत की तिथि उस दिन सूर्योदय में न भी रहेगी तो भो अल्पकाल में अवश्य आ जायगी । अतएव एक दिन पहले व्रतवाली तिथि के वर्तमान रहने से व्रत एक दिन पूर्व करना होगा । सूर्योदय काल में यदि व्रत की तिथि छः घटी प्रमाण न हो तो भी व्रत एक दिन पहले करना पड़ेगा।
तिथि-ह्रास में व्रत तिथि की व्यवस्था पहले ही बतलायो गयी है । जैनागम में सोदयातिथि वही मानी गयी है, जो उदयकाल में कम से कम छः घटी प्रमाण हो । उदयातिथि के न मिलने पर अस्तकालीन तिथि ग्रहण की जाती है। उदाहरण के लिए यों समझना चाहिए कि किसी व्यक्ति को चतुर्दशी से सुखचिन्तामणि व्रत प्रारम्भ करना है। व्रत प्रारम्भ के दिन चतुर्दशी उदयकाल में ८ घटी १० पल प्रमाण थी, अतः व्रत कर लिया गया । अगली चतुर्दशी बुधवार को ३ घटी १० पल है और मंगलवार को त्रयोदशी ५ घटी १५ पल है । यहां यदि बुधवार को व्रत किया जाता है तो ३ घटी १० पल प्रमाण, जो कि उदयकाल में तिथि का मान है, छः घटी प्रमाण से अल्प है । अतः बुधवार को चतुर्दशी सोदया नहीं कहलायेगी। व्रत के लिए तिथि का सोदया होना आवश्यक है । सोदया न मिलने पर प्रस्तातिथि ग्राह्य की जाती - है । इसलिए चतुर्दशी का व्रत मंगलवार को ही कर लिया जायगा।
तिथि-वृद्धि होने पर दो दिन लगातार व्रत करने की बात आती है। मान लीजिए कि बुधवार को एकादशी ६० घटी ० पल है और गुरुवार को एकादशी ६/४० पल है । इस प्रकार की स्थिति में प्रथम तिथि एकादशी पूर्ण है, अतः बुधवार को व्रत करना होगा। गुरुवार के दिन भी एकादशी का प्रमाण सोदया छः घटी से अधिक है, अतः गुरुवार को भी उपवास करना पड़ेगा। इस प्रकार तिथिवृद्धि में दो दिन लगातार उपवास करना पड़ता है। यदि यहाँ पर गुरुवार के दिन एकादशी ५ घटी ४० पल ही होती, तो सोदया-छः घटी प्रमाण न होने से उपवास के लिए ग्राह य नहीं थी । अतएव गुरुवार को पारणा की जा सकती है । उपवास का दिन केवल बुधवार ही रहेगा। इस प्रकार तिथिक्षय और तिथिवृद्धि में सुखचिन्तामणि व्रत की व्यवस्था समझनी चाहिए। अष्टान्हिकादि व्रतों में तिथि-क्षय होने पर पुनः व्यवस्थाव्रतान्तं व्रतं कथं क्रियतेऽस्योपर्यन्यदुक्तं च अपभ्रंश दूहा