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व्रत कथा कोष
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समान ही फल देते हैं, उनके द्वारा मानी हुई तिथि के अन्त में विद्यमान रहते हैं। तिथि-क्षय के दिन सबसे प्रथम काल मुहूर्त पाता है, जो यथानाम तथा गुणवाला होता हुमा अमगलकारक होता है । परन्तु तिथि-क्षय के दिन मध्यान्ह के उपरान्त काल मुहर्त का प्रभाव घट जाता है और प्रानन्द तथा अमृत मुहूर्त अपना फल देने लगते हैं । प्राचार्यों ने एक दिन पहले जो व्रत करने की विधि बतलायी है, उसका अर्थ यह है कि पहले दिनवाली तिथि का अन्तिम मुहूर्त, जो कि अमृतसंज्ञक कहा गया है, व्रततिथि के दिन के लिए फलदायक होता है ।
तिथिहास और तिथिवृद्धि होने पर सुखचिन्तामरिण व्रत को व्यवस्थाअधिकगृहीतानुक्ततिथी को विधिरिति चेत्तदाह-तिथिहासे व्रतिकः तदादिदिनमारभ्य उपवासः कार्यः । अधिकतिथौ को विधि-रितिचेत्तदाहयथाशक्ति द्वितीयायां तिथौ पुनः पूर्वप्रोक्तो विधिः कार्यः, हीनत्वात् त्रिमुहूर्ततः व्रतविधिन भवति ।
अर्थ-सुखचिन्तामणि अत में तिथिह्रास और तिथिवृद्धि होने पर व्रत करने की विधि क्या है ? तिथिह्रास होने पर व्रत करने वालों को एक दिन पहले से व्रत करना चाहिए।
तिथिवद्धि होने पर चया व्यवस्था है ?-प्राचार्य कहते हैं कि तिथिवृद्धि होने पर दूसरे दिन-बढ़े हुए दिन भी विधिपूर्वक व्रत करना चाहिए। यदि तिथि तीन मुहूर्त प्रर्थात् बढ़ी हुई तिथि छः घटी से मल्प हो तो उस दिन व्रत नहीं करना चाहिये।
विवेचन-तिथिह्रास और तिथिवृद्धि होने पर सुखचिन्तामणि व्रत में उपवास निश्चित तिथि को करना चाहिए। तिथि की वृद्धि होने पर एक दिन और उपवास करना पड़ेगा। परन्तु तिथि-वृद्धि में इस बात का सदा खयाल रखना पड़ेगा कि बढ़ी हुई तिथि छः घटी से अधिक होनी चाहिए । छः घटी से अल्प होने पर उस दिन पारणा कर ली जायगी । तिथिह्रास अर्थात् जिस तिथि को व्रत करना है, उसी का ह्रास/क्षय हो तो उस तिथि के पहले वाली तिथि को व्रत करना