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व्रत कथा कोष
प्रमाण तिथि का मान, मान लेने में दूसरी युक्ति यह है कि तिथि का शक्तिशाली काल धर्मध्यान और आत्मचिंतन में बिताने का विधान चार घटी सूर्योदय के उपरान्त किया गया है । जिससे स्पष्ट मालूम होता है कि तिथि तत्व को अवगत कर यही प्राचार्यों ने यह विधान किया है ।
व्रत के प्रादि-मध्य प्रस्त में तिथिहानि होने पर प्रश्रदेव का मत---
प्रादिमध्यावसानेषु हीयते
तिथिसत्तम्रा । श्रादौ व्रतविधिः कार्या प्रोक्तं श्रीमुनिपुङ्गवैः ।। अर्थ - श्रभ्रदेव ने अपने व्रतोद्योतन श्रावकाचार में व्रत के प्रारम्भ, मध्य और अन्त में तिथि के घट जाने पर व्यवस्था बतलायी है कि - यदि आदि, मध्य और अन्त में नियत अवधि वाले व्रतों की तिथियों में से कोई तिथि घट जाय तो व्रत करने वाले व्रती श्रावकों को एक दिन पहले से व्रत को करना चाहिए । ऐसा श्रेष्ठ मुनियों ने कहा है ।
विवेचन - यद्यपि तिथिहास और तिथिवृद्धि के होने पर किस व्रत को कब से करना चाहिये तथा किस-किस व्रत को एक दिन अधिक करना चाहिए और किसको नहीं ? तिथिवृद्धि और तिथि ह्रास का प्रभाव किन-किन व्रतों पर नहीं पड़ता है ? यह भी पहले विस्तार से लिखा जा चुका है । यहाँ पर प्राचार्य ने अभ्रदेव का मत उद्धृत कर यह बतलाने का प्रयत्न किया है कि जैनमान्यता में नियत अवधि वाले कुछ व्रतों के लिए चान्द्र तिथियाँ ग्रहण नहीं की गयी हैं, बल्कि सावन दिन मान कर ही व्रत किये जाने का विधान है। जो व्रत केवल एक दिन के लिये ही रखे जाते हैं, उनमें चान्द्रतिथि का ही विचार ग्रहण किया जाता है । षोड़शकारण व्रत में भी चान्द्रमास और चान्द्र तिथि का ही ग्रहण किया गया है, अतः यह तिथिह्रास होने पर भी व्रत किया जाता है । मेघमाला व्रत को सावन दिनों के अनुसार इस व्रत के लिए चान्द्रतिथियों का विधान भी नहीं है, प्रत्युत किये गये हैं । इसी कारण यह किसी खास निश्चित तिथि को नहीं किया यद्यपि कुछ प्राचार्यों ने श्रावणमास की कृष्णा प्रतिपदा से इस व्रत के आदेश दिया है, परन्तु है यह सावन व्रत है, इसी कारण इसमें सावन
एक दिन पहले से नहीं
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किया ही जाता है,
सावन दिन ही ग्रहरण
जाता है ।
करने का
दिनों का