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________________ व्रत कथा कोष ___ वास्तव में व्रत का फल तभी मिलता है, जब सूर्योदयकाल में विधेयतिथि कम-से-कम दो घटी सामायिक, प्रतिक्रमण आलोचना के लिए तथा तीन घटी प्रमाण पूजा के लिए और एक घटी प्रमाण प्रात्मचिन्तन के लिए और उपवास सम्बन्धी नियम ग्रहण करने के लिए रहे। मलसंघ के प्राचार्यों ने इसी कारण छः घटी प्रमाण तिथि को व्रत के लिए ग्राह य माना है । दस घटी प्रमाण तिथि को व्रतके लिए ग्राह्य मानने में सिर्फ दो युक्तियां है- "प्रथम षष्ठांशमपि ग्राह यं दानाध्ययनकर्मणि" यह आगम वाक्य है । इसके अनुसार दान, पूजा-पाठ आदि के लिए षष्ठांश तिथि ग्रहण करनी चाहिए । दूसरी युक्ति जो कि अधिक बुद्धिसंगत प्रतीत होती है, वह है सामायिक, प्रतिक्रमण, पूजा-पाठ, स्वाध्याय और आत्मचिंतन के लिए दो-दो घटी समय निर्धारित करना । व्रत करने वाले श्रावक को व्रत के दिन प्रातःकाल दो घटी सामायिक, दो घटी प्रतिक्रमण, दो घटी पूजापाठ, दो घटी स्वाध्याय, दो घटी आत्मचिंतन करना चाहिए । अतः जो विधेय तिथि व्रत के दिन कम-से-कम दस घटी नहीं है, उसमें धार्मिक क्रियाएँ यथार्थरूप से सम्पन्न नहीं की जा सकती हैं । अतएव दस घटी या इससे अधिक प्रमाण तिथि को ही व्रत के लिए ग्राह य मानना चाहिए। छः घटी प्रमाण मलसंघ और पूज्यपाद की शिष्यपरम्परा व्रत तिथि का मान स्वीकार करती है । इसकी उपपत्ति दो प्रकार से देखने को मिलती है। कुछ लोग कहते हैं कि तिथि की चार अवस्थाएँ होती हैं- बाल, किशोर, युवा और वृद्ध । उदयकाल में पाँच घटी प्रमाण तिथि बालसंज्ञक मानी जाती है। पांच घटी के उपरान्त दस घटी तक किशोरसंज्ञक और दस घटी से लेकर बीस घटी तक युवासंज्ञक तथा अनंकित तिथि वृद्धसज्ञक कही गयी है । युवासंज्ञक तिथि के कुछ लोगों ने दो भेद किये हैं- पूर्व युवा और उत्तर युवा । दिनमान पर्यन्त पूर्ण युवा और दिनमान के पश्चात् उत्तर युवा संज्ञक तिथियां बतायो गयी हैं । इस परिभाषा के प्रकाश में देखने पर अवगत होता है कि सूर्योदय काल में पांच घटी तक का समय बालसंज्ञक है, इसके पश्चात् किशोरसंज्ञक काल आता. है । बालसंज्ञक समय में तिथि निर्बल मानी जाती है तथा किशोरसंज्ञा में तिथि निर्बल समझा जाती है। इसी कारण तिथि का प्रमाण छः घटी माना गया है । व्रत समय में तिथि बालसंज्ञा को छोड़ किशोर अवस्था को प्राप्त हो जाती है । तिथि का समस्त सार किशोर अवस्था में प्रादुर्भूत होता है। रसघटी
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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