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ब्रत कथा कोष
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शक्तिहीनं करोतु वाप्यधिकस्याधिकं फलम् । सशक्तिके च निःशक्तिके शेयं नेदमुत्तरम् ।।
अर्थ-सिंहनन्दी विरचित पञ्चनमस्कारदीपिका नामक ग्रन्थ में भी कहा है-तिथिवृद्धि होने पर जिसमें शक्ति नहीं है, उसको भी एक दिन अधिक व्रत करना चाहिए, क्योंकि एक दिन अधिक व्रत करने से अधिक फल की प्राप्ति होती है । जो यह प्रश्न करते हैं कि जिसमें शक्ति नहीं है, वह किस प्रकार अधिक दिन व्रत करेगा। शक्तिशाली को ही एक दिन अधिक व्रत करना चाहिए । शक्ति के अभाव में एक दिन अधिक व्रत करने का प्रश्न ही उठता नहीं है। आचार्य इस थोथो दलील का खण्डन करते हैं तथा कहते हैं कि व्रत करने वाला शक्तिशाली या शक्तिरहित है, यह कोई उत्तर नहीं है। व्रत सभी को तिथि-वृद्धि होने पर एक दिन अधिक करना चाहिए । व्रत ग्रहण करने वाला अपनी शक्ति को देखकर ही व्रत ग्रहण करता है।
विवेचन-प्राचार्य सिंहनन्दो ने पञ्चनमस्कारदीपिका नामक ग्रन्थ लिखा है। आपने इस ग्रंथ में तिथिवृद्धि होने पर व्रत कितने दिन तक करना चाहिए, इसकी व्यवस्था बतलायी है। कुछ लोग यह आशका करते हैं कि जिसमें शक्ति है, वह तिथि वृद्धि में एक दिन अधिक व्रत करेगा और जिसमें शक्ति नहीं है, वह नियत अवधि पर्यन्त ही व्रत करेगा। प्राचार्य ने इस प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा है कि व्रत करने में शक्ति, अशक्ति का प्रश्न नहीं है। अधिक दिन व्रत करने से अधिक फल की प्राप्ति होती है। जो शक्तिहीन हैं, उनको तो व्रतग्रहण नहीं करना चाहिए । अपने को शक्तिहीन समझना बहिरात्मा बनना है । आत्मा में अनन्त शक्ति है, कर्म बन्धन के कारण प्रात्मा की शक्ति आच्छादित है । कर्म बन्धन के टूटते ही या शिथिल होते ही पूर्ण या अपूर्ण रूप में शक्ति उद्भूत होती है।
व्रत करने का मुख्य ध्येय यही है कि कर्म बन्धन शिथिल हो जायं और ऐसा अवसर मिले जिससे इस कर्मबन्धन को तोड़ने में समर्थ हो सकें। व्रत करके भी अपने को निःशक्ति समझना बहिरात्मा का लक्षण है । यद्यपि जैनागम शक्तिप्रमाण व्रत करने का आदेश देता है । यदि उपवास करने की शक्ति नहीं है तो एकाशन