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________________ भूमिका ९'माय' कंबल्यावस्था में भक्त आपसे स्वर्ग एवं मोम की प्राप्ति हेतु याचना करते हैं अतः आपको नाथ कहा जाता है। [१०] 'महाकाणिक' महान क्याल स्वभाव होने के कारण आपको महाकारुणिक कहा गया है । [१९| 'वीर' महावीर को श्रेष्ठ एवं निज भक्तों को विशिष्ट (उपदेशात्मकरूपी) लक्ष्मी प्रदाता होने के कारण वीर कहा है । [१२] 'वर्षमान' आप ज्ञान वैराग्य एवं अनन्त चतुष्टय रूप लक्ष्मी से निरन्तर वृद्धिगत होते हैं अतः वर्धमान है अथवा ज्ञान एवं सन्मान रूप परम अतिशय को प्राप्त होने के कारण आप वर्णमान है । [१३] कमलासन' यहां पर कमलासन के ३ कर दिये हैं [i] समवशरण में कमल पर अन्तरिक्ष में विराजित रहते हैं, अतः कमलासन है अथवा आप पद्मासन से विराजमान रहकर धर्मोपदेश देते हैं । अतः कमलासन है। [ii] विहार के समय देवगण आपके चरणों के नीचे सुवर्णकमलों की रचना करते हैं। इसलिये आप कमलासन हैं। [iii 'क' अर्थात् आत्मा के अष्टकर्मरूपी 'मल' का सम्पूर्ण विनाश करते हैं अतः आप कमलासन है"। [१४' पापों का हरण करने वाले होने से आप हरि कहे जाते हैं। ___ [१५ / 'बुद्ध' आप केवलज्ञान रूपी बुद्धि को धारण करने वाले होने के कारण बुद्ध कहलाते हैं । १. नाश्येने स्वर्ग-मोक्षो मान्यते भक्तर्वा नाथ: ।। -जिनसहरनाम शतक ५, पाष्ठ ४८ २. जिनसहस्रनाम-पं. आशाधर १० ९५ । ३, यही, पतक ७, पृ० १०२ | ४, वहीं शतक पृ० १० । ५. जिनसहननाम-शतक ८, पृ० १०८ । ६. वही, पृष्ठ ११ । ७. वही। शतक ९ पृष्ठ ११९ ।
SR No.090540
Book TitleAgam 33 Prakirnak 10 Viratthao Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyavijay, Sagarmal Jain
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year
Total Pages53
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size789 KB
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