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________________ वीरत्थो इस प्रकार जिन सहस्रनाम के दस शतकों में बारस्तव के ३६ में से १५ नामों की समानतः . होती है। इसके पूर्व आचार्य जिन सेन ने जिन सहस्र नाम से दस शतकों का एक ग्रन्थ लिया था। इसी प्रकार भट्टारक सफल कीति ने भी जिन 'सहस्र नाम का' १२३ दलोकों का एक ग्रप लिखा । श्वेताम्बर परम्परा में हेमचन्द्राचार्य ने 'श्री अर्हन्नामसहस्रसमुच्चयः' नाम से १२३ श्लोकों का ग्रन्थ लिखा, जिनमें भी महावीर के अनेक पर्यायवाची नामों एवं गुणों का संकीर्तन किया गया है । __इस प्रकार जैन आगमों एवं अन्य स्तुतिपरक ग्रन्थों के तुलनात्मक विवेचन में हमने अपनी ज्ञान सीमाओं को ध्यान में रखते हुए पर्चा प्रस्तुत की है। हमारी यह इच्छा अवश्य थी कि वीरस्थो में प्रतिपादित एक-एक शब्द का जैन बौद्ध एवं वैदिक परम्परा में विस्तार खोजा जाय, परन्तु इससे ग्रन्थ प्रकाशन में विलम्ब होना स्वाभाविक था । हम आशा करते हैं कि स्तुतिपरक साहित्य में रूचि रखने वाले विद्वान विस्तृत तुलनारमक अध्ययन कर इस कमी को पूरा करेंगे। इसी शुभेच्छा के साथ-- वाराणसी सागरमल जैन १ जनवरी १९९५ सुभाष कोठारी
SR No.090540
Book TitleAgam 33 Prakirnak 10 Viratthao Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyavijay, Sagarmal Jain
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year
Total Pages53
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size789 KB
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