SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 21
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वीरत्यमा में आ चुका था। पुनः यदि हम अनेक प्रकीर्णकों के रचयिता के समान इस प्रकीर्णक के कर्ता भी वीरभद्र को माने तो उनका काल १०वीं शताब्दी निश्चित है । ऐसी स्थिति में वीरस्तब का रचनाकाल भी ईस्वी सन् की १०वीं शताब्दी होना चाहिए किन्तु वीरभद्र वीरत्पओ के रचयिता हैं इसका स्पष्ट उल्लेख नहीं है। अतः इस बारे में विशेष अधिकार न कर पाना बहुत मुश्किल है। यहाँ पर तो हम इतना ही कह सकते हैं। बोरस्तत्र के रचनाकाल के सम्बन्ध में एक अनुमान यह किया जा सकना है, सर्वप्रथम आचागि के द्वितीय श्रुत स्कन्ध के भावना अध्ययन में और कल्पसूत्र में महावीर के तीन गुण निष्पन्न नामों का उल्लेख हुआ है । जब हिन्द पुराणों में विष्ण आदि के सहस्त्रनाम देने की परम्परा का विकास हा तो जनों में भी उसका अनुसरण करके जिन सहस्रनाम लिखे गये। सबसे प्राचीन जिनसहस्रनाम जिनसेन लगभग ९वीं पाती का है। प्रस्तुत कृति में मात्र २६ नाम हैं--इससे ऐसा लगता है कि, यह कृति उसके पूर्व ही कभी लिखी गई हो। सुज्ञ जन इस बारे में विशेष एवं विवेचन खोजकर इस कमी को पूरा करेंगे। विषयवस्तु · वीरस्तय प्रकीर्णक में कुल ४३ गाथाएं हैं। इन गाथाओं में श्रमण भगवान महावीर के २६ नामों की व्युत्पत्तिपरक स्तुति प्रस्तुत की गयी है। ग्रन्थकार ने महावीर को अरूह, अरिहत, अरहंत, देव, जिन, वीर, परमकारुणिक, सार्वज्ञ, सर्वदर्शी, पारग, विकालविज्ञ, नाथ, वीतराग, केवलि, त्रिभुवन गुरु, सयं, त्रिभुवन में श्रेष्ठ, भगवान, तीर्थकर, पाकेन्द्र द्वारा नमस्कृत, जिनेन्द्र, वर्धमान, हरि. हर, कमलासन और बुद्ध विशेषण देकर उनका गुण कीर्तन किया है। (गाथा १.४) इन छबीस नामों का व्युत्पत्तिपरक अर्थ निम्न प्रकार किया है ११) अहह--महावीर को जन्म-मरण रूपी संसार के बीज को अंकुरित करने वाले कर्मों को ध्यान रूपी ज्वाला में जलाकर संसार में पुनः उतान नहीं होने के कारण 'अरूह' कहा गया है । (गाथा ५) (२) मरिहंत-चोर उपसर्ग, परिषद एवं कषायो का नाश करने बाले, वन्दन स्तुसि, नमस्कार. पूजा, सत्कार एवं सिद्धि के योग्य
SR No.090540
Book TitleAgam 33 Prakirnak 10 Viratthao Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyavijay, Sagarmal Jain
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year
Total Pages53
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size789 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy