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________________ भूमिका तथा देव, मनुष्य एवं इन्द्रों से पूजित होने के कारण अरिहंत कहा गया है । (गाधा ६-८) (३) परहंत -समस्त परिग्रह से रहित (अरह), जिससे कुछ भी छिपा हुआ नहीं है (अरहस्), श्रेष्ठ ज्ञान के द्वारा निज स्वरूप को प्राप्त, मनोहर एवं अमनोहर शब्दों से अलिप्त, मन, वचन, शरीर से आचार में रमे हुए, श्रेष्ठ देवों एवं इन्द्रों से पूजित एवं मोक्षद्वार पर स्थित होने से महावीर को अरहंत कहा गया है । (गाथा ९-१२) ४) देव नाम--सिद्धिरूपी स्त्री से क्रीड़ा करने वाले, मोह रूपी शत्र के विजेता, अत्यन्त शुभ एवं पुण्य परिणामों से युक्त होने के कारण देव कहा गया है । (गाथा १३) (५) जिन--रागादि शत्रु से रहित तथा वचन समाधि एवं ससार के उत्कृष्ट गुणों से युक्त होने से उन्हें जिन कहा गया है । (गाथा १४) (६) वीर--दुष्ट अष्ट कर्मों से रहित, भोगों से विमुख, तप से शोभित एव माध्य की ओर अग्रसर होने के कारण महावीर कहा गया है । (गाथा १५-१६) (७) परम कारणिक - दुःखों से पीड़ित प्राणियों को संसार से मुक्त कराने में लगे हुए, शत्रु एवं मित्र सभी पर परम करुणावान होने से वे परम कारुणिक हैं । (गाथा १७) (a) सर्वज्ञ -अपने निमंल ज्ञान से भूत, भविष्य एवं वर्तमान को जानने वाले हैं, अतः आप सर्वज्ञ हैं । (गाथा १८) (९) सर्वदशों-सबके रूपों एव क्रियाकलापों को एक साथ अवलोकन करते हैं, अतः वे सर्वदर्शी कहलाते हैं । (गाथा १९) (१०) पारग- समस्त प्राणियों के कर्म भवों को तिराने में समर्थ एवं मार्ग प्रशस्त करने वाले होने से उन्हें पारग कहा गया है।(गाथा २०) (११) त्रिकालज्ञ -संसार के होने वाले भूत, भविष्य एवं वर्तमान को हाथ में रखे हुए आंवले की तरह देखने में समर्थ होने से महावीर को त्रिकालज्ञ कहा गया है। (गाथा २१) (१२) नाथ -भव-भवान्तर से संसार में पड़ हुए अनाथों के लिए मंगल उपदेश प्रदाता होने से आप नाथ हैं। (गाथा २२)
SR No.090540
Book TitleAgam 33 Prakirnak 10 Viratthao Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyavijay, Sagarmal Jain
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year
Total Pages53
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size789 KB
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