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________________ ६८ वो भवतामिति । अनऽस्ति द्विज ! मे देवः किमर्थ पृच्छसि त्वकं ।। ५७३ ॥ वसित्वा वाङबोऽवोचत् परिभूमिपद गाय देवं नेप्या. म्यहं तद्वत परीक्षार्थ न शंसयः॥ ५७४॥ कियत्यपि ततो दुरे गत्वा स श्रावकोप्तमः। कपिकच्छलतांदू-ट्वा नत्वावप!ि ' ॥ ५७५ ॥ देयोऽयं सकलो विप्र! मदीयो भक्तिभिः सदा । इति श्रुत्या गृहीत्वा नत्पत्रादीनि विनादतः ।। ५३ ॥ मकाये परित्या चलत्येव यदा तदा । खर्जपीडाकुलो भूत्वा पपात धरणीतले । ५७७ ॥ तदासौ थावकं प्राहत व प्रत्यक्षदेवता । प्रतियधन बिनस्प देवमोय निराकरोत् ॥ ५७८ ॥ मार्गे गच्छस्ततः प्राप्त गंगातीर्थ ततो द्विजः । भागीरथी हरिविवाः इत्युक्त्वा पनितांतरे ।। १ । तोऽमानीत्पुनः श्राद्धो द्विजं मिथ्याशं भृशं । किमेतस्य महात्न्यं भो तीर्थस्यावगतं वद ॥ ५८० ॥ वभाण श्राबकं विप्राः पवित्रयति । यह देव पस्त्रि और शक्तिमान होगा तो मेरा विनाश करेगा और यदि यह कुछ न होगा तो कुछ नहीं कर सकता । श्रावककी यह बात सुन वह ब्राह्मण उत्तर तो न दे सका केवल यही उसने पछा* कि भाई : तुम्हारा देव कौन है ? उत्तरमें श्रावकने कहा- मेरा देव आगे है। तुम मेरे देवको क्यों पूछते हो ? हंसकर ब्राह्मणने उत्तर दिया जिसप्रकार तुमने मेरे देवका तिरस्कार कर उसकी परीक्षा की है उसप्रकार में भी तुम्हारे देवका तिरस्कार कर उसकी परीक्षा करुगा इसमें जरा भी संदेह मत समझो। कुछ दूर चलकर एक कपिकच्छ (खुजली करने वाले ) वृक्षकी वेल देखी । उसे देख कर श्राक्कने कहा प्रिय विप्र ! मेरा सबसे उत्कृष्ट देव यह है भक्तिपूर्वक सदा इसकी पूजा करनी चाहिये । सुनकर ब्राह्मणने हंसकर उसके पत्ते तोड़ लिये। उनसे अपना शरीर पोंछ नगला और जल्दी जल्दी आगे चल दिया बस आगे थोड़ी ही दूर पहुंचा था कि उसका सारा | शरीर खुजलीसे व्याकुल हो गया एवं वह दुखित हो जमीनपर गिर गया तथा श्रावकसे कहने , Kलगा भाई ! तुम्हारा देवता सञ्चा है इस प्रकार प्रतिबोध देकर श्रावकने विपके अंदर जा देव मूढ़ ताका भाव विद्यमान था वह दूर कर दिया और वे दोनों आगे चलने लगे ॥ ५७६० -५७६ ॥ आगे चलकर गंगा नदीका तीर्थ पड़ा। भागीरथी हरि और विप्र, ऐसा उच्चारण कर वह ब्राह्मण गंगामें कृढ पड़ा। मिथ्यात्वी ब्राह्मणकी यह चेष्टा देखकर श्रावकने पूछा-भाई ! इसती का वापर
SR No.090538
Book TitleVimalnath Puran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size14 MB
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