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________________ रल. मादृशान् । पुनर्ददाति बैकुपंचहत्याविनाशक १८ ॥ श्रुत्यासी श्रावको भक्ति कामो हि तत्तटे स्थितः । भुक्त्वोच्छिर जमिहत्या | तहसमर्पितं .५८२॥ सदायचद्विजोहा हा भोजन में कार्य प्रायः प्राह है विप्रः कथं नाति जवादिति ॥ ५८२ | लदा भूदिवस ITह भोभुनम्मि कथं वद । त्वयोच्छिष्टं पदयं च साक्षाच्ण पापिना ॥५८ अब्रवीद्बामण सोऽपि यतावित्रिः ।। तज लैंमिश्रित धान्न भोक्तव्य कया ॥१५॥ इत्यादिहेनुभिः कृत्या प्रतियोधं गतो द्विजः । तं गुरु प्रतिपत्राशु जनतत्वं पपाठ सः । गतौ हि ततो मागभ्रांच्या भ्रष्टपश्चौ तदा । जातौ गतौ महादव्यां संभृताया कुजतुभिः ।। ५८७ ॥ तत्र सन्यम्य ME चणिजा सार्धं विधो मृतस्तदा । पूर्वस्वर्गे समुद्धतः सुरासुरनिषितः ।। ५८८ ॥ ततश्चयुत्यास्य राज्ञश्च पुत्रो जातोऽभयायकः। विपक RENERA Ke तुमने क्या गहरा माहात्म्य समझ रक्खा है उत्तरमें ब्राह्मणन कहा-- भाई श्रावक : यह तीर्थ मन सरीखे मनुष्योंको तारक है फिर बैकुण्ठको देता है जहांपर कि गो हत्या आदि फच हत्याओंसे । छटना होता है । ब्राह्मणकी यह बात सुन भोजन करनेकी इच्छासे श्रावक उसके तटपर बैठ गया। जब खा चुका और जो जटा बच रहा वह जलमें मिलाकर उसे समर्पण कर दिया अर्थात् गंगामें क्षपण कर दिया । श्रावककी यह चेष्टा देख ब्राह्मण कहने लगा हा हा तृने मेरा भोजन अप-10 वित्रकर दिया उत्तरमें श्रावकने कहा-भाई विप्र! तुम जल्दी क्यों नहीं खा लेते ? ब्राह्मणने कहाबता मैं खाऊं कैसे साक्षात् शद्र स्वरूप पापी तुने सबका सब जूठा और अपवित्र कर दिया उत्तरमें | श्रावकने कहा भाई ब्राह्मण जो जलस मिश्रितधान्य तुम्हें पवित्र बना सकता है उसे तुम खाते क्यों नहीं हो । मेरे जठं और अपवित्र करनेपर वह जूटा और अपवित्र नहीं माना जा सकता । इत्यादि बहुतसी युक्ति प्रयुक्तियोंसे श्रावकने ब्राह्मणका मिथ्यात्व भगा दिया। ब्राह्मणने भी उस श्रावकको ko अपना गुरु माना और उससे जैनधर्म पढ़ा। वहांसे आगे फिर भी वे दोनों चल दिये आगे जाकर वे रास्ता भूल गये और एक ऐसी महावनी में जा निकले जो क्रूर जीवोंसे भरी हुई थी। दोनोंने वहांपर सन्यास मरण किया। विप्र मर कर पहिले स्वर्ग में अनेक सुर असुरोंसे सेवित देव हो गया ayay Naya
SR No.090538
Book TitleVimalnath Puran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size14 MB
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