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________________ गृहीत तेवत संसारतारकं । मयापीया विना ब्रह्मचुतं नीतं मनोहरं ॥ ३४२ ॥ तद्दिनप्रभृति भ्रातः! भ्रातृभिः सह संस्थिता। मच्छोलंच परिक्षाय कोऽपि मां भो धोति न || ४४३ ॥ पितरावेकदा बोक्ष्य यौवनाड्यां लसनुद्य तिं । चिंतयामासश्चित्ते वरान्वेषणहेतवे ।। ४४४ ॥ एकदा सोमशर्माख्यो द्यूते दृष्य जहार च । दा तकारस्तदा वध्वा तायले मुष्टिभिस्तरां ॥४४५॥ तदैव मत्पिता गत्वा केतवं प्रत्ययोमणत् । घणुया यदि मे कन्यां तदा त्यो मोचयाम्यहं ।।४५६ ।। स्वीकृतं भूमिदेतेन तदा तातेन मोचितः । पश्चात यास्त्वंकारोनैव दीयतां ।। ४४७ ॥ उद्घाहिता सुखं प्राप्ता भोगजं च यदा तदा । एक्दा नाट्यशालायां लोकनार्थ स्थितः पतिः 12 सागर पधारे। राजा आदि सब लोग उनकी वंदनाके लिये गये। मैं भी गई । उपदेशके अन्तमें से सबोंने अपनी अपनी शक्तिके अनुसार संसारसे पार करनेवाले व्रत नियम लिये, मैंने भी शोला | ld का नियम लेलिया ॥४४१-४४२॥ भाई जिनदत्त ! मैं उस दिनसे लेकर भाइयों के साथ रहने लगी। मरे ऋर स्वभावको जानकर कोई भी मेरे साथ विवाह करनेको राजी नहीं होता था। एक दिन | मुझे पूर्ण युवती देख मेरे माता पिता मेरे योग्य वर ढूंढने के लियेोचिंता करने लगे। सोमशर्मा नाम IH का ब्राह्मण जो कि इससमय म रा स्वामी है ज्वारियोंके अड्डमें जुआ खेल रहा था। देवयोगसे वह अपने पासका सब धन हार गया जिससे अन्य ज्वारी उसे बांधकर मुक्कोंकी मार मारने लगे। मेरा पिता भो दैवयोगसे वहां आ निकला और वरके योग्य सुदर जान सोमशर्मासे यह कहने लगा यदि तुम मेरी कन्याके साथ विवाह करना पसंद करो तो मैं तुम्हे छुड़ा लू. परवश हो सोमKA शर्माको स्वीकार करना पड़ा एवं मरे पिताने उसे छुडाकर यह प्रतिज्ञा कराली कि मेरी पुत्रीसे तू कहकर न बोलना होगा।॥ ४४३----४४७॥ वस सोमशर्माने मोरे साथ विवाह कर लिया और समय समयपर भोगोंसे जायमान सुख भोगे । एक दिन मेरा स्वामी नाम्यशालामें नाटक देखने 18 के लिये गया। देखते देखते आधीरात हो गई इसलिये आधीरातपर वह अपने घर लौटा एवं | दरवाजेपर आकर इसप्रकार कहने लगा--- жүктеу kkkжrkers ЖЖЖЖҮКҮхжүүлүкккккккк
SR No.090538
Book TitleVimalnath Puran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size14 MB
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