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________________ मल० ३६ AYAYE सः ॥ ४३५ ॥ ( षट्पदी ) शृण्वानन्दपुरे भ्रातः शिवशर्मा नृपो धनी । नाम्ना श्रेष्ठी वसत्यत्र कजधीस्तस्य भामिनी ॥ ४३६ ॥ तयोरष्टौ महापुत्रा यभूवुः सधनोन्मदाः । श्रहं भने ति नास्नी वै पुत्री जाता चिषक्षणा ।। ४३७ ॥ अथैकदा पिता भूपं विज्ञापयति सादरं । भवद्भिः स्मेति पौध मत्पुत्र्या वल्लभत्वतः । त्वंकारो नैय दातव्यः प्रमाणं कृतवान्तृपः ॥ ४३८ ॥ ( पटूपदी) नृपदेिशं समाप्याह मेयं प्राह समक्षकं । यो मां प्रति त्वकं दत्ते तस्यानर्थं करोम्यहं ॥ ४३६ ॥ तदाप्रभृति मन्नाम तुकारीति कृतं जनैः । इत्थं तातादिसन्मान्या स्थिता धाग्नि कोषिका ॥ ४४० गुणसागरं राजाद्या वंदित जग्मुस्तदेवाहं गता मुदा ॥ ४४२ ॥ यथायर्थ भी क्रोध नहीं आया । जिनदत्तके ये वचन सुन तुकारीने कहा- भाई! क्रोधका मैं भयंकर फल भोग चुकी हूँ इसलिये मैंने क्रोध एकदम करना छोड़ दिया है। तुकारीके ये वचन सुन जिनदत्तने कहा सो कैसे ? उत्तर में तुकारी इस प्रकार कहने लगी- AEK REK नन्दपुर नगर में एक शिवशर्मा नामका सेठ है जो कि धनमें राजाकी तुलना करता है । उसकी स्त्रीका नाम कमलश्री है। सेठ शिवशर्मा के आठ पुत्र हैं जो कि धनी और निर्भय हैं। मैं एक हुत्री हूं और मेरा नाम भहा है ॥ ४३० - ४३७॥ में इतनी घमंडिन थी कि मुझसे जो तू कह कर बोलता था वह मुझे विषसरीखा जान पड़ता था । मेरे पिताका मुझपर गाढ़ स्नेह था। वे मुझे सुख बनानेके लिये एक दिन राजाके पास गये और यह कहा- - मेरी महापुत्री मुझे अत्यंत प्यारी है और तुकारसे चिड़ती है इसलिये आप तथा कोई भी पुरवासी लोग उससे तू न कहें। राजाने भी सेठ शिवशर्माका वचन स्वीकार कर लिया ॥ ४३८ ॥ जव राजाकी वैसी आज्ञा मिल गई तब मेरा और भी अधिक माहस बढ़ गया और मैंने सर्वोोंके सामने खुले शब्दोंमें यह कह दिया कि जो कोई भी मुझसे तू कह कर बोलेगा मैं उसका अर्थ कर डालूंगी। बस लोगोंने उस नसे मेरा नाम तुकारी रख दिया । यद्यपि मेरे पिता आदि मेरा पूरा आदर करते थे तथापि । मैं सदा गुस्सा ही होकर घर में रहती थी । ४३६-४४० || आनन्दपुरमें एकदिन मुनिराज गुण
SR No.090538
Book TitleVimalnath Puran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size14 MB
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