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________________ KPRK एष प्रश्नः कृतो राशा दिवारात्रं विवर्त्य भो । मार्गे नैव कुमार्गे च समागतव्यमेव च ॥ २२१ ॥ अभयास्योपदेशेन शकटाक्षेषु यंत्रण वध्वा तत्र स्थिताः सर्वे आई चाणकारकाः ॥ २२२ ॥ अभयेन समं सर्वे गतास्ते राजसन्निधौ । ननाम स्वसुतस्तस्य चरणौ वाडवैः सह ॥ २२३ ॥ समालिंग्य निजं पुत्रं समयं प्राशशंस सः । मोचनं ब्राह्मणानां हि कृत्वा तत्र सुखं स्थितः ॥ २२४ ॥ पट्टे नंदश्रियं कृत्वा यौवराज्येऽभयं बुधः 1 तथा मंत्रिपदं दत्वा गतं कालं न वैश्यसौ ॥ २२५ ॥ बौद्धधर्ममयं राज्यं कुर्वन् संतिष्ठते सदा । इभ्यः सागरयकी कृपासे पूरा किया गया ? | अंतिम प्रश्नका खुलासा यह है कि महाराज उपश्रेणिकने नंदि| ग्रामके विप्रोंके पास यह संदेशा भेजा कि सत्रोंमें बुद्धिमान मनुष्य मय अन्य ब्राह्मणों के राजगृह नगरमें आवे | उसके लिये यह कड़ी आज्ञा है कि न तो वह रातमें आवे न दिनमें आवे । न मार्गसे | आवेन कुमार्गसे आवे भूखे भी न यावे अफरे भी न आवे। किसी सवारीमें भी न आवे और न पैदल ही वे परन्तु राजगृह नगर वे अवश्य । महाराजका यह कठिन संदेशा सुन कुमार अभ| यने गाढ़ियोंके अन्दर छींके बंधवा दिये । सब लोग उनमें बैठ गये. चनाका भोजन किया जिससे न पेट भरा ही माना जा सकता है और न खाली ही । गाढ़ियोंका एक पहिया लीखपर चलाया गया और एक वे लोखपर चलाया गया बस अभयकुमारके साथ वे सबके सब राजा के समीप पहुचे एवं कुमार अभयने अपने पिता के चरणोंको साथमें गये विप्रों के साथ भक्तिपूर्वक नमस्कार किया । ॥ २१६ – २२३ ॥ विनयशील पुत्र अभयकुमारको देख महाराज श्रेणिकको परमानंद हुआ। स्नेह से गद गद हो उसे छाती से लगा लिया। उसके बुद्धिबलकी बड़ी भारी प्रशंसा की । कुमारने ब्राह्मणोंको क्षमा करा दिया एवं वह सुखपूर्वक राजसभा में बैठ गया || २२४ ॥ महाराज श्रेणिकने अपनी प्यारी रानी नंदश्रीको पटरानीका पद प्रदान किया। कुमार अभवको युवराज बनाया और मंत्री पद भी प्रदान किया जिससे उन्हें गया हुआ काल जरा भी न जान पड़ा ||२२५ ॥ इसप्रकार वे महाराज श्रेणिक बौद्धधर्मके परम भक्त बन सानंद राज्य करने लगे । १ श्रेणिक चरित्र १०६ पृष्टसे यह वर्णन विस्तारसे लिखा है प्र'थके विस्तार भयसे यहां उसे उद्धृत नहीं किया गया है।
SR No.090538
Book TitleVimalnath Puran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size14 MB
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