SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 42
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कुमारो हि दृष्ट्या वाकुलवाडवान् । जगादेव वधस्तध्यं कुतो विग्रहवेतसः ॥ २१५ ॥ तैश्च प्रोक्त समाकार्य प्रोवाच वचनं सुधीः । | माकुला भवतो यूयं गृणुतोपायमित्यलं ॥ २१६ ॥ व्याघ्रपोरंतरे स्वाप्यो मेषो मिष्टामभक्षणः । भयाइर्बलता चैव पुएतां नैव यास्यति । | २१७ ॥ तथाकृतद्विजस्तूर्णं मासार्धे प्रेषितो हि सः। दृष्ट्वा राजा तथाभूतं चित्रतां चिंतयन् हदि ॥२१८॥ इत्यादि दश संप्रश्नाः कृता राझा विवेकिना । नैदिप्रामोणकैविनैः प्रोक्तास्त्वभययोगतः ॥ २१६॥ . . मेषध पापी फरिकातलं क्षीराण्ड घालुकषेष्टनं च। घटस्थकूष्माण्डकर शिशनां दिवानिशावर्जसमागमश्च ॥ २२० । अत्यंत चिंतित और दुःखित देख कुमार अभयने पूछा--भाई । तुम लोग चित्तमें इतने दुःखित क्यों हो ! उत्तरमें विप्रोंने महाराज श्रेणिककी सारी आज्ञा कह सुनाई । सुनकर कुमारने धीरज IRE/ बंधाते हुए मिष्ट वचनोंमें इसप्रकार उनसे कहा--व्याकुल होनेकी कोई बात नहीं है मैं तुम्हे एकदा उपाय बतलाता हूँ- . दो वाघोंके वीचमें बकराको बांध दो और खूब उसे मिष्टान्न भोजन खायो । मिष्टान्नोंके खानेसे न तो वह पतला होगा और न मोटा होगा । कुमारकी आज्ञानुसार विनोंने वैसा ही किया | अर्धमास-पन्द्रह दिन रखकर उसे महाराजके पास भेज दिया। जैसा बकरा भेजा था वैसा ही IM, देख.महाराज श्रेणिक चकित रह गये एवं नंदिग्रामके विनोंकी चतुरताकी मन ही मन सराहना करने लगे ॥ २१५–२१८ ॥ इसीतरह महाराज श्रेणिकने नंदिग्रामके विप्रोंसे राजगृह नगरमें वावड़ी मगानेकी कही । हाथीका वजन मांगा, काठका नीच ऊपरका भाग पूछा, तिलके बराबर तेल मांगा, गाय भैंस आदिके दूधसे अन्य दूध मंगाया, एक ही मुर्गा लड़ानेको कहा, बाल की बनी IK रस्सी मांगी, घड़ामें भीतर ही भीतर बढ़ा हुआ कूष्मांडफल मांगा शिशुओंकी बुद्धि परीक्षा की और रात दिन आदिके विभागको छोड़कर बुद्धिमान मनुष्यको राजगृह नगर बुलाया वह सब कुमार अभ पारवहन . . ..... ....। । ।
SR No.090538
Book TitleVimalnath Puran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy