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________________ अर्थकदाधिशांनायो दुष्टतां चिरय मानसे |दिग्रामद्विजानां हिलंटितु योजयन्नरान् ॥ २०॥ प्रकृतिस्तं तदागत्य विना छिद्रन युज्यते । विद्यमाने तनौ छिन्यायश्च नाथो भवेत् । २१० ।। साध साधु तथा कृत्वा मेषं च प्राहिणोश्चरः।नो पुष्टो दुर्वलो नेष फर्तव्यो मम मेषकः ।। २१९ ।। अन्यथा निगम नीत्या निर्गमयामि देशतः ॥ २१२॥ (षट्पदी) इति श्रुत्वा द्विजाः सर्वे व्याकुलीभूतमानसाः । प्रदत्तस्तदायातो नैदिन्यामाभयेन च ।। २१३ ॥ पद्दलितं नृपं मत्वा मिलनाय विशेषतः ॥ २१४ ॥ (षट्पदो) तदाभयः | महाराज श्रेणिक सानंद राज्य भोग कर रहे थे कि उन्हें नंदिग्रामके विप्रोंकी दुष्टताका स्मरण -उठ आया और उन्हें लुटवानेके लिये कुछ मनुष्योंका शीघ्र ही वे प्रबंध करने लगे ॥२०६॥ मंत्री आदिने आकर महाराजकोसमझायाराजन् । नंदिग्रामके विनोंका छिद्र-दोष, विना प्रगट किये आपका | यह कार्य अच्छा नहीं माना जा सकता इसलिये आप पहिले उनका कोई दोष प्रगट करिये, पीछे IA उन्हें दंडित कीजिये क्योंकि यह कहावत है कि जब अपने शरीरमें छिद्र होता है अर्थात् दंड देने-12 IN वाला स्वयं दोषी ठहरता है तब न्याय नहीं माना जाता-सब लोग उसे अन्याय कहते हैं ॥ २१ ॥ ठीक, ठीक कहकर महाराजने मंत्री आदिकी बात मान ली । शीघ्र हो एक बकरा मंगाकर सेवकों-18 1 के साथ उसे नंदिग्राम भेज दिया और यह आज्ञा कर दी कि नंदिमामके विष इसे खूब खिलावेंE7 पिलावे परंतु यह ध्यान रखें कि न तो यह बकरा पुष्ट हो और न कृश हो । यदि मेरी इस आज्ञा-3 का पालन नहीं किया गया तो मैं तुम्हारा सर्वस्व लुटवा लूगा और देशसे वाहिर निकलवा दूंगा ॥ २११–२१२ ॥ महाराजकी यह घोषणा सुन नदिनामके समस्त ब्राह्मण भयसे कप गये, महाराजकी आज्ञाका किस प्रकार पालन करें यह कुछ भी उन्हें न सूझ पड़ा। ... वेणातट नगरके निवासी सेठ इन्द्रदत्तने जब यह सुना कि श्रेणिक राजगृह नगरके राजा बन X गये हैं तो वह अपनी पुत्री नंदश्री और अभयकुमारको साथ ले उनसे विशेष रूपसे मिलने आया | और नंदिग्राममें ही दैवयोगसे आकर ठहर गया ॥ २१३-२१४ ॥ नंदिग्रामके समस्त ब्राह्मणोंको Күкүкүкү КүжүүЕКүкүкKrk KARYKYONTENT
SR No.090538
Book TitleVimalnath Puran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size14 MB
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