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बेमल
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मतिः स्थरपा वध यस्तै च क्व । महायुद्धप मालालास गावगामटः । १०: स्वल्पीयायापि बुयाह बकरीमि मनोगतं । तिमिरारे: प्रवेशो न दीपस्य स्यान्न तत्र किं । १३ । यदकारि महोत्कृष्टः पूर्वप्रा रहे क्रमात् । कुंभोयेन क्षुद्र पा किं हि नामितोऽ. थी उससे अपनी कीर्ति समझते थे। उसीप्रकार गुरुगणभी सिद्धोंके यश-स्वरूपको कीर्ति पूर्वक धारण करनेवाले होते हैं अर्थात् उनके निष्कलंक स्वरूपका ध्यान करना ही अपना पूर्ण कर्तव्य समझते है
हैं। इन विशिष्ट शक्तिके धारक गुरुओंके सिवाय और भी ज्ञानी पुरुषों में सिंहके समान पराक्रमी १. महात्मा विशेषरूपसे हुए हैं उन्हें भी मैं इस ग्रन्थके प्रारम्भमें भक्तिपूर्वक नमस्कार करता ह।७८ 1
महान बुद्धिकेधारकजिनसेन आदिपर्वआचार्योंने जिसरूपसे भगवान विमलनाथ चिरित्रका उल्लंख 9 किया है ठीक उसीके अनुसार में भगवान विमलनाचशेपुराण के कहने का इच्छुक है अर्थात् में जो इस पुराणको कह रहा हूं वह स्वतन्त्ररूपसे अपना मन गढन्त नहीं कह रहा हूँ किन्तु भगवान जिनसेन
आदिके वचनों के अनुसार कह रहा हूँ। ! अन्धकार अपनी लघुता प्रगट करते हुए कहते हैं कि कहां तो यह भगवान विमलनाधका महागम्भीर पुराण और कहां मेरी अत्यन्त अल्पबुद्धि । तथा 15
कहां तो जिनसेन सरीखे पुराण पारीण कवि और कहां में अत्यन्त तुच्छ, तथापि महाबुद्धिरुपी IS तरंगोंकी मालासे व्याप्त शास्त्रपारंगत आचार्यरूपी समुद्रोंके सामने मैं गामट सरीखा है।
अर्थात् गामठका अर्थ प्रकारणसे यहां पर खाई है तो जिसप्रकार खाईका जल खास समुद्रका ही | जल होता है परन्तु वह समुद्रस्वरूपसे नहीं होता उसीप्रकार में भगवान जिनसेन आदिक सामने र
तुच्छ हूँ तथापि उनकी महाबुद्धि के द्वारा मुखसे निकले वचन मेरे हृदयमें भी विद्यमान है इस D लिये इस पुराणमें जिन वचनोंका मैंने उल्लेख किया है ये वचन भगवान जिनसन आदि के ही न Ka वचन मानकर प्रमाणीक समझना चाहिये। इसरूपसे यह बात ठीक है कि मैं भगवान जिनसेन
१ 'नरसिंहकंच, यहां पर भो ग्रन्थकारने श्लेषालंकारका उपयोग किया है क्योंकि अन्ययम्मी हिंदूसंप्रदायमें नरसिंह नामका एक अवतार माना है। यहॉपर 'नरसिंहका, यह अर्थ न लेकर जो अर्थ लिखा गया है वही ठीक है।
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